ANANDPUR SAHIB



आनंदपुर साहिब – सिख धर्म की पवित्र भूमि

आनंदपुर साहिब, भारत के पंजाब राज्य के रोपड़ ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगर है, जो सिख धर्म के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह नगर सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा स्थापित किया गया था और यहीं पर खालसा पंथ की स्थापना भी हुई थी। इसलिए आनंदपुर साहिब को सिख धर्म की धार्मिक राजधानी भी कहा जाता है।

स्थापना और इतिहास

आनंदपुर साहिब की स्थापना गुरु तेग बहादुर जी ने 1665 में की थी। उन्होंने इस नगर को "चक्क नानकी" के नाम से बसाया था, जो उनकी माता माता नानकी जी के नाम पर था। बाद में उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह जी ने इसका नाम बदलकर आनंदपुर साहिब रखा, जिसका अर्थ है "आनंद का नगर"।

यह नगर मुग़ल अत्याचारों और धार्मिक असहिष्णुता के विरुद्ध सिखों के संघर्ष का प्रमुख केंद्र बना। यहीं पर 13 अप्रैल 1699 को गुरु गोविंद सिंह जी ने पंच प्यारे के माध्यम से खालसा पंथ की स्थापना की। यह घटना सिख इतिहास की सबसे गौरवशाली घटनाओं में से एक मानी जाती है।

धार्मिक महत्त्व

आनंदपुर साहिब सिख धर्म के अनुयायियों के लिए तीर्थस्थान की तरह है। यहाँ पर कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे हैं, जैसे:

  • तख्त श्री केसगढ़ साहिब – जहाँ खालसा पंथ की स्थापना हुई। यह पाँच तख्तों (धार्मिक सिंहासनों) में से एक है।
  • गुरुद्वारा श्री आनंदगढ़ साहिब, लोहगढ़ साहिब, और फतेहगढ़ साहिब जैसे स्थान भी ऐतिहासिक महत्व रखते हैं।

इन गुरुद्वारों में प्रतिदिन कीर्तन, अरदास और लंगर की व्यवस्था होती है, जहाँ हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं।

होला मोहल्ला उत्सव

आनंदपुर साहिब में हर साल होला मोहल्ला का आयोजन बड़े धूमधाम से होता है। यह पर्व होली के अगले दिन मनाया जाता है और सिख वीरता, अस्त्र-शस्त्र प्रदर्शन, घुड़सवारी, गतका (मार्शल आर्ट) आदि का प्रदर्शन किया जाता है। यह पर्व खालसा की सैन्य परंपरा और अनुशासन को उजागर करता है।

सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान

आनंदपुर साहिब न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह सिख संस्कृति, वीरता, और बलिदान का प्रतीक भी है। यह नगर आज भी सिखों के आत्मबल और साहस की प्रेरणा का स्रोत है। यहाँ के शिक्षण संस्थान, संग्रहालय और ऐतिहासिक स्थल आने वाले लोगों को सिख इतिहास की झलकियाँ देते हैं।

निष्कर्ष

आनंदपुर साहिब केवल एक नगर नहीं, बल्कि सिख धर्म का हृदय है। यह उस साहस, बलिदान और धर्म की भूमि है जहाँ से खालसा पंथ ने जन्म लिया और अन्याय के विरुद्ध डट कर खड़ा हुआ। आज भी यह स्थान सिखों की आस्था, शक्ति और एकता का प्रतीक बना हुआ है।



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