RITUALS OF JAINISM

 

जैन धर्म की विभिन्न धार्मिक रस्में (संस्कार व अनुष्ठान) – 

जैन धर्म एक अत्यंत प्राचीन और आध्यात्मिक धर्म है जो जीवन को संयम, अहिंसा, सत्य और आत्मशुद्धि के सिद्धांतों पर आधारित मानता है। जैन धर्म में अनेक धार्मिक रस्में और परंपराएँ हैं, जो व्यक्ति को आत्मा की शुद्धि, नैतिकता और मोक्ष की ओर प्रेरित करती हैं। नीचे जैन धर्म की प्रमुख धार्मिक रस्मों का विवरण दिया गया है:


1. पूजा (पूजन विधि):

जैन धर्म में पूजा आत्मा की पवित्रता को जाग्रत करने का माध्यम मानी जाती है। इसमें तीर्थंकरों की प्रतिमा की आराधना की जाती है। मुख्य पूजा में आठ द्रव्यों (जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, दीपक, धूप, नैवेद्य और फल) से अष्टद्रव्य पूजा की जाती है। पूजा करते समय भक्त शुद्ध वस्त्र धारण कर, नियमपूर्वक शांतिपूर्वक आरती व स्तुति करते हैं।


2. समायिक:

यह एक विशेष साधना है जिसमें व्यक्ति एक निश्चित समय (लगभग 48 मिनट) के लिए सभी राग-द्वेष, मोह, हिंसा से दूर होकर आत्मचिंतन करता है। समायिक का उद्देश्य है 'समता' की भावना को जाग्रत करना।


3. प्रतिक्रमण:

यह आत्मविश्लेषण की प्रक्रिया है। इसमें व्यक्ति अपने द्वारा दिन भर किए गए पापों, गलतियों व विचारों का चिंतन करता है और उनके लिए क्षमा मांगता है। यह रोज़ शाम को या विशेष पर्वों पर किया जाता है।


4. पंचकल्याणक:

यह तीर्थंकरों के जीवन के पाँच महत्वपूर्ण घटनाओं का उत्सव है – गर्भ (च्यवन), जन्म (जन्म), दीक्षा, केवलज्ञान, और निर्वाण। किसी नए जिन मंदिर की स्थापना पर भी पंचकल्याणक समारोह आयोजित किया जाता है।


5. संलेखना / संथारा:

जैसा कि पहले बताया गया, यह जीवन के अंतिम चरण में लिया गया व्रत है जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे भोजन और जल का त्याग कर शांतिपूर्वक, वैराग्य भाव से शरीर का परित्याग करता है।


6. पर्युषण पर्व / दस लक्षण धर्म:

यह जैन धर्म का सबसे पवित्र पर्व है। इसमें आत्मशुद्धि, उपवास, स्वाध्याय, ध्यान, क्षमा याचना आदि प्रमुख अनुष्ठान होते हैं। अंतिम दिन 'क्षमावाणी दिवस' मनाया जाता है जहाँ सभी एक-दूसरे से क्षमा माँगते हैं।


7. दीक्षा संस्कार:

जब कोई व्यक्ति सांसारिक जीवन छोड़कर जैन साधु या साध्वी बनने का संकल्प लेता है, तो दीक्षा संस्कार होता है। इसमें सभी सांसारिक वस्तुओं का त्याग करके संयमित जीवन की शुरुआत की जाती है।


8. अहिंसा यात्रा / पदयात्रा:

जैन मुनि वर्षायोग के समय एक ही स्थान पर रहते हैं और बाकी समय पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्राएँ अहिंसा, शांति और धर्म के प्रचार हेतु होती हैं।


निष्कर्ष:

जैन धर्म की ये रस्में केवल धार्मिक क्रियाएँ नहीं हैं, बल्कि जीवन को संयम, साधना और आत्मदर्शन से जोड़ने का माध्यम हैं। प्रत्येक अनुष्ठान आत्मा को शुद्ध करने और मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करता है।

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