NIHANG SIKH

 

निहंग सिख 

निहंग सिख सिख समुदाय के एक विशेष और प्राचीन योद्धा वर्ग हैं, जिन्हें उनकी वीरता, अनुशासन, धार्मिक समर्पण और विशिष्ट वेशभूषा के लिए जाना जाता है। इन्हें ‘अकाल फौज’ यानी 'अमर सेना' भी कहा जाता है। निहंग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'निषंक' से हुई है, जिसका अर्थ है 'निर्भय' या 'निर्भीक'। वे सिख धर्म के महान गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा गठित खालसा पंथ के प्रारंभिक और महत्वपूर्ण अंग रहे हैं।

निहंग सिखों का जीवन पूरी तरह से गुरुबाणी, मार्शल आर्ट, घुड़सवारी और शस्त्र विद्या को समर्पित होता है। ये दिन की शुरुआत अमृतवेला में पाठ और अरदास से करते हैं। निहंग सिखों की विशेष पहचान उनके नीले रंग के वस्त्र, ऊँचे दस्तार (पगड़ी) जिसमें लोहे की गोल चक्कर (कड़ा) लगे होते हैं, और उनके साथ हमेशा रहने वाले शस्त्र जैसे तलवार, भाला, कृपाण और नेजा से होती है।

निहंग अपने पारंपरिक अस्त्र-शस्त्रों के साथ-साथ ‘गटका’ नामक युद्ध कला में भी पारंगत होते हैं। इनकी जीवनशैली साधु-संतों जैसी होती है लेकिन जरूरत पड़ने पर ये योद्धा बनकर युद्धभूमि में उतरते हैं। इतिहास में निहंग सिखों ने मुगलों, अफगानों और अंग्रेजों के खिलाफ अनेक युद्धों में हिस्सा लिया और सिख धर्म और पंजाब की रक्षा की।

निहंग सिख किसी भी भौतिक वस्तु या सुख-सुविधा के मोह से दूर रहते हैं। वे गुरु ग्रंथ साहिब को ही सर्वोच्च सत्ता मानते हैं और गुरु के आदेश को ही अपना धर्म समझते हैं। ये आमतौर पर गुरुद्वारों, टकसालों या डेरों में रहते हैं और लंगर व सेवा के माध्यम से लोगों की सेवा करते हैं।

वर्तमान समय में, भले ही इनकी संख्या कम हो गई हो, लेकिन निहंग सिख आज भी अपने परंपरागत रीति-रिवाजों और जीवनशैली को बनाए रखे हुए हैं। वे सिख इतिहास की गौरवशाली विरासत को आज की पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं। निहंग सिख साहस, सेवा और धर्म के प्रतीक हैं, जो हमें अपने धर्म और संस्कृति के प्रति समर्पण की प्रेरणा देते हैं।

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