Shreyansh Nath

 

श्रेयांशनाथ (Shreyanshnath) 

भगवान श्रेयांशनाथ जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर थे। उनका जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था, जो कि प्राचीन भारत की एक प्रसिद्ध और पवित्र नगरी मानी जाती है। वे इक्ष्वाकु वंश के राजा विश्णु और रानी विष्णु देवी के पुत्र थे। उनका जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। श्रेयांशनाथ का जन्म अत्यंत शुभ और दिव्य लक्षणों के साथ हुआ था, जिससे यह ज्ञात हो गया कि वे एक महान आत्मा हैं।

बाल्यकाल से ही भगवान श्रेयांशनाथ का स्वभाव अत्यंत शांत, विनम्र, करुणामयी और धार्मिक था। वे सच्चाई, संयम और त्याग की भावना से ओतप्रोत थे। उनका मन सांसारिक सुखों से विमुख होकर आध्यात्मिक मार्ग की ओर अग्रसर होता रहा।

युवावस्था में उन्होंने राज्य की जिम्मेदारियाँ संभालते हुए भी प्रजा के कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें संसार की क्षणभंगुरता का ज्ञान हुआ और उन्होंने आत्मा की मुक्ति के लिए तपस्वी जीवन को अपनाने का निश्चय किया। उन्होंने राज-पाठ और सभी सांसारिक बंधनों का त्याग कर दिया और दीक्षा लेकर जंगलों में तपस्या के लिए चले गए।

कई वर्षों की कठोर साधना और तपस्या के बाद भगवान श्रेयांशनाथ को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद वे तीर्थंकर के रूप में प्रतिष्ठित हुए और उन्होंने धर्मचक्र प्रवर्तन किया। उन्होंने पंचमहाव्रत—अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह—का उपदेश देकर लोगों को मोक्ष का मार्ग बताया।

उनकी वाणी में ऐसी शक्ति थी कि जो भी उन्हें सुनता, वह धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होता था। उनके उपदेशों से हजारों लोगों ने अपने जीवन में परिवर्तन किया और आत्मज्ञान की ओर कदम बढ़ाया।

भगवान श्रेयांशनाथ का प्रतीक चिन्ह गेंहूँ की बाल (अर्थात गेहूँ का पौधा) है। जैन धर्म के अनुयायी उन्हें श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजते हैं। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने सम्मेद शिखर पर्वत पर जाकर निर्वाण प्राप्त किया।

भगवान श्रेयांशनाथ का जीवन त्याग, तप और सत्य का प्रतीक है। वे आज भी जैन धर्म में आस्था रखने वालों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उनका जीवन आदर्श मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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