AKSHAY TRITIYA
:
अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया हिंदू धर्म में एक अत्यंत शुभ और पवित्र पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसे ‘अक्ती’ या ‘अखती’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कार्यों और दान का अक्षय (जिसका कभी क्षय न हो) फल प्राप्त होता है। यही कारण है कि इसे "अक्षय तृतीया" कहा जाता है।
धार्मिक महत्त्व:
अक्षय तृतीया का विशेष धार्मिक महत्त्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म भी इसी दिन हुआ था, अतः इसे परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसके अलावा, इस दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश के साथ मिलकर महाभारत लिखने का कार्य प्रारंभ किया था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, माता अन्नपूर्णा और कुबेर को भी इसी दिन विशेष पूजन कर अक्षय संपत्ति प्राप्त हुई थी।
पर्व से जुड़ी परंपराएँ:
अक्षय तृतीया के दिन लोग विशेष पूजा-पाठ, व्रत और दान करते हैं। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। कई लोग नए कार्यों की शुरुआत इसी दिन करते हैं, जैसे विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय आदि, क्योंकि इसे अबूझ मुहूर्त (जिसके लिए किसी विशेष शुभ मुहूर्त की आवश्यकता नहीं) माना जाता है। सोने और चांदी की खरीदारी करना भी इस दिन शुभ माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन खरीदी गई वस्तुएँ और संपत्ति में निरंतर वृद्धि होती है।
दान-पुण्य का महत्त्व:
अक्षय तृतीया के दिन दान का विशेष महत्त्व है। गरीबों को भोजन, जल से भरे घड़े, वस्त्र, सोना, चांदी, अनाज, गाय आदि का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। विशेष रूप से जल दान और अन्न दान को बहुत पुण्यदायी कहा गया है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान अगले जन्मों तक फलदायी रहता है।
आधुनिक समय में पर्व का स्वरूप:
वर्तमान समय में अक्षय तृतीया का स्वरूप कुछ बदल गया है। अब यह पर्व मुख्यतः सोने-चांदी की खरीदारी के लिए प्रसिद्ध हो गया है। ज्वेलरी शोरूमों में विशेष छूट और आकर्षक ऑफर दिए जाते हैं। हालांकि धार्मिक भावनाएँ अभी भी इस पर्व से जुड़ी हुई हैं, परंतु बाजारवाद ने इसकी पारंपरिक आत्मा को कुछ हद तक प्रभावित किया है।
निष्कर्ष:
अक्षय तृतीया केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति, दान, सेवा और नए शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन की गई हर शुभ क्रिया का फल चिरकाल तक अक्षय रहता है। अतः हमें इस पर्व को सच्चे हृदय से श्रद्धा और सेवा-भाव के साथ मनाना चाहिए।
Comments
Post a Comment