HOLA MOHALLA

 

होला मोहल्ला (Hola Mohalla) 

होला मोहल्ला एक प्रमुख सिख त्योहार है जिसे विशेष रूप से पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार होली के अगले दिन मनाया जाता है और इसे सिख वीरता, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। इसका आयोजन खासकर आनंदपुर साहिब में किया जाता है, जहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक इकट्ठा होते हैं।

इस पर्व की शुरुआत दसवें सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने 1701 में की थी। उन्होंने होली को केवल रंगों का त्योहार न मानते हुए, उसे सिख योद्धाओं की शक्ति और पराक्रम को प्रदर्शित करने के अवसर के रूप में देखा। उन्होंने 'होला मोहल्ला' की परंपरा शुरू की, जिसमें सिख सैनिक युद्ध कौशल, घुड़सवारी, तलवारबाज़ी, गटका (एक प्रकार का मार्शल आर्ट), और अन्य शारीरिक कलाओं का प्रदर्शन करते हैं। यह एक प्रकार का मॉक युद्ध (काल्पनिक युद्ध अभ्यास) होता है जिससे योद्धाओं को युद्ध की तैयारी में मदद मिलती थी।

होला मोहल्ला केवल शारीरिक प्रदर्शन तक सीमित नहीं है। इस दौरान कीर्तन, कवि दरबार, भजन, और गुरबाणी पाठ जैसे धार्मिक आयोजन भी होते हैं। लंगर (सामूहिक भोजन) की व्यवस्था बहुत बड़ी होती है, जिसमें हज़ारों लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह सिख धर्म की सेवा, समानता और भाईचारे की भावना को दर्शाता है।

यह त्योहार तीन दिनों तक चलता है, और इसका समापन एक विशाल शोभायात्रा से होता है जिसमें सिख धर्म के अनुयायी पंज-प्यारों के नेतृत्व में नगर भ्रमण करते हैं। श्रद्धालु पारंपरिक पंजाबी वस्त्र पहनते हैं और ढोल-नगाड़ों की गूंज के साथ आनंद और उत्साह में भरपूर भाग लेते हैं।

होला मोहल्ला सिख धर्म की बहादुरी, अनुशासन और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम है। यह त्योहार न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सिख इतिहास और संस्कृति की गहराई से जुड़ा हुआ है। यह युवाओं को प्रेरित करता है कि वे अपनी परंपराओं को जानें, शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम बनें और समाज सेवा में आगे आएं।

इस प्रकार, होला मोहल्ला एक ऐसा पर्व है जो रंगों, पराक्रम, भक्ति और भाईचारे का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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