BHAGWAN SAMBHAVNATH

 

संभवनाथ 

भगवान सम्भवनाथ जैन धर्म के तृतीय तीर्थंकर हैं। उनका जन्म प्राचीन भारत की प्रसिद्ध नगरी श्रोतिपुर (वर्तमान में सम्भावना नगर) में हुआ था, जो आज उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित माना जाता है। वे राजा श्रीसेन और रानी श्रीदेवी के पुत्र थे। सम्भवनाथ जी का जन्म चैत्र महीने की चतुर्दशी तिथि को हुआ था। वे इक्ष्वाकु वंश के सदस्य थे, जो जैन धर्म में एक पवित्र और महान वंश के रूप में जाना जाता है।

भगवान सम्भवनाथ का जीवन आदर्श और प्रेरणादायक था। बचपन से ही वे शांत, बुद्धिमान और करुणामय स्वभाव के थे। यद्यपि वे राजकुमार थे, फिर भी उनका मन सांसारिक भोग-विलास में नहीं बल्कि आत्मचिंतन और साधना में अधिक रमता था। उन्होंने युवावस्था में विवाह किया, परंतु शीघ्र ही वैराग्य भाव उत्पन्न होने पर उन्होंने राज-पाट और परिवार को त्याग कर मुनि दीक्षा ले ली।

संभवनाथ जी ने कठोर तपस्या और साधना के बाद कैवल्य ज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त की। वे कर्मों के बंधनों से मुक्त हो गए और तीर्थंकर बन गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने धर्म चक्र प्रवर्तन किया और अनगिनत जीवों को मोक्ष के पथ पर अग्रसर किया। उनके उपदेशों में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की प्रमुखता थी।

उनका चिन्ह घोड़ा है, जो गति, शक्ति और जागरूकता का प्रतीक माना जाता है। उनकी प्रतिमाओं में अक्सर उनके सिंहासन के नीचे घोड़े का चिह्न देखा जाता है। उनका शरीर स्वर्णवर्णी बताया गया है और उन्होंने लाखों वर्षों तक जीवित रहकर धर्म का प्रचार किया।

संभवनाथ जी ने भी सम्मेद शिखर (पारसनाथ पर्वत) पर ही तपस्या करते हुए मोक्ष प्राप्त किया, जो आज जैन धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है।

भगवान सम्भवनाथ का जीवन आत्मसंयम, त्याग और तपस्या का प्रतीक है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और ज्ञान में है। उनका जीवन आज भी जैन अनुयायियों के लिए आदर्श और मार्गदर्शक है।

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