FOOD CULTURE OF JAINISM

 

जैन धर्म की खाद्य संस्कृति 

जैन धर्म एक प्राचीन भारतीय धर्म है जो अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य के सिद्धांतों पर आधारित है। जैन धर्म की खाद्य संस्कृति पूरी तरह से इन सिद्धांतों का पालन करती है, विशेष रूप से अहिंसा का। जैन आहार दुनिया में सबसे शुद्ध और सात्विक भोजन परंपराओं में से एक माना जाता है।

जैन धर्म में यह माना जाता है कि हर जीव—even सूक्ष्म जीव—का सम्मान करना चाहिए और उसे हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। इसी कारण, जैन लोग शुद्ध शाकाहारी होते हैं। वे न केवल मांस, मछली, अंडा आदि से परहेज करते हैं, बल्कि कुछ सब्ज़ियाँ और फल जैसे आलू, प्याज, लहसुन, गाजर, मूली आदि भी नहीं खाते। इसका कारण यह है कि ये जड़ वाली सब्जियाँ मिट्टी में उगती हैं और उन्हें निकालने पर कई सूक्ष्म जीवों की हत्या होती है।

जैन भोजन में केवल उन्हीं चीजों का उपयोग किया जाता है जिनमें जीवन के प्रति हिंसा न हो। भोजन को हमेशा दिन के समय ग्रहण करने की परंपरा होती है, विशेष रूप से सूर्यास्त से पहले। यह मान्यता है कि रात में भोजन करने से अनजाने में छोटे जीवों का सेवन हो सकता है, जो अहिंसा के सिद्धांत के विरुद्ध है।

इसके अलावा, जैन समुदाय उपवास और संयम को भी विशेष महत्व देता है। "पार्युषण" जैसे पर्वों में कई जैन अनुयायी एक या कई दिनों तक उपवास करते हैं और केवल उबले हुए या सीमित भोजन का सेवन करते हैं।

जैन भोजन में मसालों का उपयोग भी सीमित मात्रा में किया जाता है ताकि इंद्रियों पर नियंत्रण बना रहे। खाना पकाने और परोसने में भी स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

जैन भोजन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता को भी बढ़ावा देता है। यही कारण है कि आजकल कई लोग जैन आहार को स्वास्थ्य और नैतिकता की दृष्टि से अपनाने लगे हैं।

इस प्रकार, जैन धर्म की खाद्य संस्कृति केवल एक खान-पान की शैली नहीं, बल्कि एक गहन जीवन दर्शन का हिस्सा है।

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