LORD BAHUBALI

 

भगवान बाहुबली 

भगवान बाहुबली, जिन्हें गोमतेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म के एक महान तपस्वी और सिद्ध पुरुष माने जाते हैं। वे जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र थे। भगवान बाहुबली का जीवन तप, संयम, अहिंसा और आत्मज्ञान का अद्भुत उदाहरण है।


जन्म और परिवार

बाहुबली का जन्म अयोध्या में हुआ था। उनके पिता ऋषभदेव ने कुल 100 पुत्रों और 2 पुत्रियों को जन्म दिया था। जब ऋषभदेव ने सन्यास लिया, तब उन्होंने अपने बेटों को अपने-अपने राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी। बाहुबली को पौडनपुर राज्य दिया गया।

उनके बड़े भाई भरत चक्रवर्ती बन चुके थे और उन्होंने अपने भाइयों से अधीनता स्वीकार करने को कहा। सभी भाइयों ने सिर झुका दिया, लेकिन बाहुबली ने युद्ध की चुनौती दी।


बाहुबली और भरत का संघर्ष

भरत और बाहुबली के बीच संघर्ष टल नहीं सका। लेकिन शारीरिक युद्ध के बजाय, उन्होंने तीन प्रकार की प्रतियोगिताएँ कीं: दृष्टि युद्ध, जल युद्ध और मल्ल युद्ध। तीनों में बाहुबली ने भरत को पराजित किया।

जब बाहुबली भरत को मारने ही वाले थे, तब उन्होंने सोचा कि यह हिंसा, घमंड और अहंकार का रास्ता है। उन्होंने युद्ध छोड़ दिया और राजसिंहासन का त्याग कर तपस्वी जीवन अपना लिया।


तपस्या और मोक्ष

बाहुबली ने एक वर्ष तक निष्कंप कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े होकर तप किया। इतने समय तक एक ही मुद्रा में रहने से उनके शरीर के चारों ओर लताएँ और जीव-जंतु तक बस गए, लेकिन वे अडिग रहे। इस गहन तपस्या के कारण उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्ध बन गए।


गोमतेश्वर प्रतिमा

भगवान बाहुबली की विशाल मूर्ति कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में स्थित है। यह मूर्ति लगभग 57 फीट ऊँची है और यह दुनिया की सबसे ऊँची एकाश्म (एक पत्थर से बनी) मूर्तियों में से एक है। इसका निर्माण 10वीं शताब्दी में चामुंडराय नामक मंत्री ने करवाया था।


निष्कर्ष

भगवान बाहुबली आत्म-नियंत्रण, अहिंसा और त्याग के प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा विजेता वही है जो अपने अहंकार और इच्छाओं को जीत सके। जैन धर्म में उन्हें आदर्श पुरुष के रूप में पूजा जाता है।

भगवान बाहुबली – आत्मविजय के महान प्रतीक।

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