DHARM NATH

 

धर्मनाथ (Dharmnath) 

भगवान धर्मनाथ जैन धर्म के 15वें तीर्थंकर थे। उनका जन्म एक अत्यंत पवित्र और दिव्य घटना के रूप में हुआ था। उनका जन्म वर्धमान (वर्तमान बिहार) में राजा विश्णु और रानी विनीतिका के घर हुआ था। वे इक्ष्वाकु वंश के थे और उनका जन्म माघ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। उनके जन्म के समय चारों ओर शुभ घटनाएँ घटित हुईं, जिससे यह संकेत मिला कि वे एक महान आत्मा के रूप में अवतार लेंगे।

भगवान धर्मनाथ का बचपन अत्यंत शांत और विनम्र था। वे बचपन से ही ध्यान, साधना और धर्म के प्रति आकर्षित रहते थे। उन्हें संसार की नश्वरता और जीवन के वास्तविक उद्देश्य का ज्ञान था। बचपन से ही उनका स्वभाव बहुत ही संतुलित और आध्यात्मिक था।

युवावस्था में भगवान धर्मनाथ ने राजकाज संभाला, लेकिन जल्द ही उन्होंने यह महसूस किया कि संसार के भौतिक सुखों से कोई स्थायी शांति नहीं मिल सकती। इसलिए उन्होंने राजपाट और सांसारिक बंधनों को त्याग कर तपस्वी जीवन अपनाया। उन्होंने कठिन तपस्या और ध्यान किया और अंततः उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

भगवान धर्मनाथ ने पंचमहाव्रतों—अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह—का प्रचार किया। उन्होंने आत्मज्ञान के महत्व को बताया और मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया। उनका प्रतीक चिन्ह कमल का फूल है, जो उनकी प्रतिमाओं में अंकित होता है।

भगवान धर्मनाथ का जीवन त्याग, तपस्या और सत्य के मार्ग का प्रतीक है। उनका जीवन आज भी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा स्रोत है। उनके उपदेशों से हमें शांति, संयम और आत्मज्ञान की दिशा में चलने की प्रेरणा मिलती है।

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