SANLEKHNA VRAT

 

सल्लेखना व्रत 

परिचय:

सल्लेखना व्रत जैन धर्म का एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक व्रत है, जिसे जीवन के अंतिम चरण में आत्मशुद्धि, वैराग्य और संयम की चरम अभिव्यक्ति के रूप में अपनाया जाता है। इसे संथारा या समाधि-मरण भी कहा जाता है। यह व्रत मृत्यु को शांति, ज्ञान और आत्मदर्शन के साथ स्वीकार करने की प्रक्रिया है, जिसमें जैन साधु, साध्वियाँ अथवा श्रावक-श्राविकाएँ संकल्पपूर्वक अपनी इंद्रियों और इच्छाओं का त्याग करते हुए शरीर से मोह समाप्त करते हैं।

अर्थ और महत्व:

‘सल्लेखना’ का अर्थ है – ‘लेखना’ यानी शारीरिक व मानसिक कषायों (राग-द्वेष, मोह आदि) को शिथिल करना या क्षीण करना। यह व्रत व्यक्ति को मृत्यु का भय न रखते हुए उसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से स्वीकार करने की प्रेरणा देता है। जैन दर्शन के अनुसार, सल्लेखना आत्मा की शुद्धि का अंतिम साधन है, जिससे मोक्ष की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है।

यह व्रत केवल तभी लिया जाता है जब व्यक्ति के जीवन में कोई उपाय शेष न रहे – जैसे गंभीर बीमारी, वृद्धावस्था या मृत्यु निकट हो। यह किसी प्रकार की आत्महत्या नहीं है, बल्कि यह व्रत संयम, शांति और समता के साथ जीवन त्यागने की प्रक्रिया है।

व्रत की प्रक्रिया:

सल्लेखना व्रत लेने से पहले व्यक्ति गुरु या आचार्य से अनुमति प्राप्त करता है। इसके बाद वह धीरे-धीरे आहार और जल का त्याग करता है। पहले केवल स्वाद का त्याग होता है, फिर भोजन सीमित किया जाता है और अंततः केवल जल पर निर्वाह कर अंत में उसका भी त्याग किया जाता है।

इस प्रक्रिया में व्यक्ति ध्यान, स्वाध्याय, प्रार्थना और आत्मचिंतन में समय व्यतीत करता है। वह किसी भी प्रकार के राग-द्वेष, चिंता या दुख से मुक्त हो जाता है। परिवारजन भी इस प्रक्रिया को श्रद्धा और समर्पण से स्वीकार करते हैं और अंतिम समय में शांति का वातावरण बनाते हैं।

सल्लेखना और आत्महत्या में अंतर:

बहुत से लोग सल्लेखना को आत्महत्या समझने की भूल करते हैं, जबकि दोनों में स्पष्ट अंतर है। आत्महत्या क्रोध, भय, निराशा या भागने की प्रवृत्ति से होती है, जबकि सल्लेखना व्रत संयम, वैराग्य, और आत्मज्ञान की भावना से किया जाता है। आत्महत्या हिंसा है, जबकि सल्लेखना अहिंसा की चरम अवस्था है।

निष्कर्ष:

सल्लेखना व्रत जैन धर्म की एक महान परंपरा है जो व्यक्ति को मृत्यु से डरने की बजाय उसे गरिमा और आत्मशुद्धि के साथ स्वीकार करने की प्रेरणा देता है। यह व्रत दिखाता है कि मृत्यु अंत नहीं है, बल्कि आत्मा के शुद्धिकरण और मोक्ष की ओर एक पवित्र कदम है। सल्लेखना न केवल जैन साधना की ऊँचाई है, बल्कि यह जीवन और मृत्यु दोनों को आध्यात्मिक रूप से देखने की एक अनुपम दृष्टि भी प्रदान करती है।

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