NEMI NATH

 

नेमिनाथ (NEMINATH) 

भगवान नेमिनाथ जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर थे। उनका जन्म यदुवंश में हुआ था, जो कि भगवान श्रीकृष्ण का कुल माना जाता है। नेमिनाथ का जन्म सौराष्ट्र क्षेत्र के शौरिपुर (वर्तमान में गुजरात) में हुआ था। उनके पिता का नाम समुद्धर राजा था और माता का नाम शिवादेवी था। उनके बचपन का नाम 'निमी' था, जो आगे चलकर 'नेमिनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

नेमिनाथ का जीवन करुणा, त्याग और अहिंसा की मिसाल है। बचपन से ही वे अत्यंत शांत, गंभीर और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से अत्यंत शक्तिशाली थे। उनका विवाह राजकुमारी राजीमती से निश्चित हुआ था, जो उनकी सौंदर्य और गुणों से अत्यधिक प्रभावित थीं।

विवाह के दिन जब नेमिनाथ बारात के साथ दुल्हन के महल की ओर जा रहे थे, तब रास्ते में उन्होंने एक मांसाहारी यज्ञ देखा, जिसमें अनेक जानवरों को मारने के लिए पिंजरे में बंद किया गया था। यह दृश्य देखकर उनका ह्रदय करुणा से भर उठा। उन्होंने विचार किया कि यदि उनके विवाह के कारण इतनी हिंसा हो रही है, तो ऐसा जीवन स्वीकार नहीं किया जा सकता।

उन्होंने वहीं पर सब कुछ त्याग दिया और जंगल की ओर चले गए। उन्होंने दीक्षा लेकर साधु जीवन अपना लिया और आत्मा की शुद्धि के लिए तपस्या करने लगे। कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान (सर्वज्ञता) की प्राप्ति हुई।

केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान नेमिनाथ ने लोगों को मोक्ष का मार्ग बताया। उन्होंने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय जैसे व्रतों का उपदेश दिया। उनके उपदेशों ने हजारों लोगों को सही मार्ग दिखाया और उन्हें आत्मज्ञान की ओर प्रेरित किया।

भगवान नेमिनाथ का चिन्ह शंख (शंखचक्र) है, और उनकी प्रतिमाओं में अक्सर शंख का चित्र अंकित होता है। वे पर्वत गिरनार पर तपस्या कर मोक्ष को प्राप्त हुए, जो आज भी एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।

भगवान नेमिनाथ का जीवन एक प्रेरणा है कि करुणा, त्याग और सच्चाई के मार्ग पर चलकर कोई भी आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। वे आज भी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र हैं।

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