FESTIVALS OF JAINS
जैन धर्म के प्रमुख पर्व
जैन धर्म एक प्राचीन और आध्यात्मिक धर्म है जो अहिंसा, सत्य, संयम और आत्मशुद्धि पर आधारित है। जैन धर्म में पर्वों का विशेष महत्व है क्योंकि ये आत्मा की उन्नति, तपस्या और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इन पर्वों के माध्यम से जैन अनुयायी आत्मा को कर्मों से मुक्त करने का प्रयास करते हैं।
यहाँ जैन धर्म के प्रमुख पर्वों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
1. पर्युषण पर्व (Paryushan Parv):
यह जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। श्वेतांबर संप्रदाय में यह 8 दिन और दिगंबर संप्रदाय में 10 दिन (दशलक्षण पर्व) तक मनाया जाता है। इसमें उपवास, तपस्या, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण और क्षमावाणी जैसे धार्मिक कार्य किए जाते हैं। इसका उद्देश्य आत्मशुद्धि और संयम का पालन करना होता है।
2. महावीर जयंती (Mahavir Jayanti):
यह पर्व भगवान महावीर स्वामी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन शोभायात्राएँ, प्रवचन, भक्ति गीत और दान का आयोजन किया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के प्रचार और भगवान महावीर के सिद्धांतों के स्मरण का अवसर होता है।
3. क्षमावाणी दिवस (Kshamavani Diwas):
यह पर्व पर्युषण के अंतिम दिन या बाद में मनाया जाता है। इस दिन सभी जैन अनुयायी एक-दूसरे से क्षमा माँगते हैं और कहते हैं – “मिच्छामी दुक्कडम्” जिसका अर्थ है – "मैंने आपको जाने-अनजाने में कोई कष्ट दिया हो तो क्षमा करें।" यह पर्व अहंकार को त्यागकर विनम्रता अपनाने का प्रतीक है।
4. दीपावली (Diwali):
जैन धर्म में दीपावली को भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक अमावस्या को भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्त किया था, इसलिए यह दिन जैन अनुयायियों के लिए पवित्र माना जाता है। इस दिन दीप जलाकर आत्मज्ञान का प्रकाश फैलाने का संदेश दिया जाता है।
5. आयंबिल ओली (Ayambil Oli):
यह वर्ष में दो बार आने वाला नौ दिन का पर्व है – चैत्र और कार्तिक मास में। इसमें श्रद्धालु प्रतिदिन "आयंबिल" करते हैं, यानी बिना मसाले, घी, दूध, दही, फल और मिठास के केवल उबले हुए सात्विक भोजन का एक बार सेवन करते हैं।
6. तपोदय पर्व / मासी-वड़ा:
यह पर्व विशेष रूप से तपस्या करने वालों के लिए होता है। इसमें साधक विशेष व्रतों जैसे एकासन, उपवास, नवकारसी आदि का पालन करते हैं।
निष्कर्ष:
जैन धर्म के पर्व केवल उत्सव नहीं हैं, बल्कि ये आत्मा के जागरण, संयम, त्याग और क्षमा के प्रेरक माध्यम हैं। ये पर्व हमें सिखाते हैं कि सच्चा आनंद भौतिक सुखों में नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और धर्म के पालन में है।
Comments
Post a Comment