GURUMUKHI SCRIPT



गुरमुखी लिपि

गुरमुखी लिपि सिख धर्म और पंजाबी भाषा की प्रमुख लिपि है। यह लिपि सिखों के धार्मिक ग्रंथों को लिखने के लिए प्रयुक्त होती है और इसे सिख संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। “गुरमुखी” शब्द का अर्थ है “गुरु के मुख से निकला हुआ”। ऐसा माना जाता है कि इस लिपि का विकास सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के समय में हुआ, लेकिन इसे व्यवस्थित रूप से गुरु अंगद देव जी ने स्थापित किया।

गुरमुखी लिपि की संरचना बहुत ही सरल और वैज्ञानिक है। इसमें कुल 35 मूल अक्षर होते हैं, जिन्हें “ਪੈਂਤੀ ਅੱਖਰ” कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ संयोजन और विशेष संकेत भी होते हैं जिन्हें जोड़कर विभिन्न ध्वनियाँ बनाई जाती हैं। यह लिपि अबूगिडा (abugida) प्रकार की है, यानी इसमें प्रत्येक व्यंजन में एक स्वर समाहित होता है और अन्य स्वरों के लिए अतिरिक्त चिह्नों का प्रयोग किया जाता है।

गुरमुखी लिपि को लिखने के लिए दाहिने से बाएं नहीं, बल्कि बाएं से दाहिने लिखा जाता है, जैसे हिंदी और अंग्रेज़ी। इसकी लेखन शैली स्पष्ट, सरल और सुव्यवस्थित होती है, जिससे पढ़ना और सीखना अपेक्षाकृत आसान होता है।

गुरमुखी का प्रयोग मुख्य रूप से गुरु ग्रंथ साहिब, दसम ग्रंथ, और अन्य सिख धर्मग्रंथों को लिखने में होता है। इसके माध्यम से ही सिख धर्म की शिक्षाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ी हैं। इसके अलावा पंजाब राज्य में पंजाबी भाषा के लेखन के लिए भी गुरमुखी लिपि का ही प्रयोग होता है।

गुरमुखी न केवल एक लिपि है, बल्कि यह सिख संस्कृति, इतिहास और पहचान का प्रतीक भी है। इसके माध्यम से सिख धर्म की मूल शिक्षाएँ, भजन, बाणी, और आध्यात्मिक ज्ञान संरक्षित हैं। आज भी सिख बच्चे गुरुद्वारों में गुरमुखी लिपि पढ़ना और लिखना सीखते हैं ताकि वे अपने धर्मग्रंथों को समझ सकें।


निष्कर्ष:
गुरमुखी लिपि केवल लेखन प्रणाली नहीं, बल्कि सिख धर्म और पंजाबी संस्कृति की आत्मा है। इसके माध्यम से सिख धर्म की अमूल्य वाणियाँ और शिक्षाएँ हम तक पहुंचती हैं। इसे सिख विरासत का गौरवपूर्ण प्रतीक माना जाता है।


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