GURU HAR RAY JEE

 

गुरु हर राय जी – करुणा, सहिष्णुता और शांति के प्रतीक 

गुरु हर राय जी सिख धर्म के सातवें गुरु थे। उनका जन्म 16 जनवरी 1630 को किरातपुर साहिब (पंजाब) में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबा गुरदित्त जी और माता का नाम माता निहाल कौर जी था। गुरु हर राय जी, गुरु हरगोबिंद साहिब जी के पौत्र थे। वे बचपन से ही अत्यंत विनम्र, दयालु और शांत स्वभाव के थे। उनमें बचपन से ही सेवा, भक्ति और करुणा की भावना विद्यमान थी।

गुरु हर राय जी को उनके दादा गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने विशेष रूप से धर्म और सेवा के संस्कार दिए। उन्होंने छोटी उम्र में ही आध्यात्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियाँ निभाना शुरू कर दिया था। 8 मार्च 1644 को, अपने दादा गुरु हरगोबिंद साहिब जी के देहावसान के बाद, केवल 14 वर्ष की आयु में वे सिखों के सातवें गुरु बने।

दयालु और चिकित्सक हृदय

गुरु हर राय जी को फूलों, वनस्पतियों और औषधियों से विशेष प्रेम था। उन्होंने किरातपुर में एक बड़ा हर्बल बाग (औषधीय उद्यान) तैयार करवाया और एक औषधालय (dispensary) भी स्थापित किया, जहाँ रोगियों का निःशुल्क इलाज किया जाता था। उन्होंने अपने सेवकों को निर्देश दिया था कि वे बीमार और जरूरतमंद लोगों की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।

एक ऐतिहासिक प्रसंग के अनुसार, जब मुग़ल शहज़ादा दारा शिकोह गंभीर रूप से बीमार हुआ, तो गुरु हर राय जी ने बिना किसी भेदभाव के अपने हकीम और औषधियाँ भेजीं, जिससे उसकी जान बची। यह उनकी सहिष्णुता और करुणा का अद्भुत उदाहरण है।

शांतिपूर्ण प्रवृत्ति के बावजूद सजग

गुरु हर राय जी स्वयं शांतिप्रिय थे, लेकिन उन्होंने अपने दादा गुरु हरगोबिंद जी की परंपरा को बनाए रखा। वे जानते थे कि धर्म की रक्षा के लिए बलिदान और वीरता भी आवश्यक है, इसलिए उन्होंने अपनी सेना को बनाए रखा, ताकि समय आने पर सिखों की सुरक्षा की जा सके।

उन्होंने सिख धर्म को प्रचारित करने के लिए प्रचारक (मंझीदार) नियुक्त किए और सिख अनुयायियों को एकजुट किया। वे लोगों को सत्य, सेवा, और ईश्वर भक्ति का मार्ग दिखाते रहे।

धर्म के लिए दृढ़ता

जब औरंगज़ेब सत्ता में आया, तो उसने गुरु हर राय जी को दिल्ली बुलवाया, क्योंकि उसे संदेह था कि गुरु जी ने दारा शिकोह की मदद की थी। गुरु जी स्वयं नहीं गए, लेकिन अपने बड़े पुत्र राम राय को दिल्ली भेजा। वहाँ राम राय ने औरंगज़ेब को खुश करने के लिए गुरु ग्रंथ साहिब की एक पंक्ति को बदल दिया, जिससे गुरु हर राय जी अत्यंत दुखी हुए। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि धर्म में समझौता स्वीकार्य नहीं है और अपने पुत्र राम राय को उत्तराधिकार से वंचित कर दिया।

गुरु हर राय जी ने अपने छोटे पुत्र हरकृष्ण साहिब जी को सिख पंथ का अगला गुरु नियुक्त किया, जो आगे चलकर आठवें गुरु बने।

देहावसान

गुरु हर राय जी ने 6 अक्टूबर 1661 को 31 वर्ष की आयु में अपना दिव्य स्वरूप त्याग दिया। उनका जीवन भले ही छोटा था, लेकिन उनके कार्य और आदर्श आज भी सिख धर्म को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।


गुरु हर राय जी का जीवन शांति, सेवा, संयम, और साहस का संगम था। उन्होंने हमें सिखाया कि सच्चा धर्म वही है जो दूसरों की मदद करे, बिना किसी भेदभाव के।

उनका संदेश था – “सेवा और भक्ति से बड़ा कोई धर्म नहीं है, लेकिन जब धर्म पर संकट हो, तो उसकी रक्षा के लिए भी तैयार रहो।”

Comments

Popular posts from this blog

MAHUA BAGH GHAZIPUR