DILWADA JAIN TEMPLE

 

दिलवाड़ा जैन मंदिर 

दिलवाड़ा जैन मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के माउंट आबू में स्थित एक अत्यंत प्रसिद्ध और पवित्र जैन तीर्थ स्थल है। ये मंदिर जैन धर्म की महान स्थापत्य कला, शिल्पकला और धार्मिक आस्था के अद्भुत उदाहरण हैं। संगमरमर की उत्कृष्ट नक्काशी और सूक्ष्म कलात्मकता के लिए ये मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

दिलवाड़ा मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुआ था। इन मंदिरों का निर्माण सोलंकी वंश के राजाओं के शासनकाल में हुआ। प्रमुख मंदिरों का निर्माण कार्य विमलशाह और वास्तुपाल-तेजपाल जैसे जैन मंत्रियों द्वारा करवाया गया।

यह मंदिर समूह कुल पाँच प्रमुख मंदिरों से मिलकर बना है, और ये सभी मंदिर अलग-अलग तीर्थंकरों को समर्पित हैं।


प्रमुख मंदिर:

  1. विमल वसाही मंदिर

    • यह सबसे पुराना मंदिर है, जिसका निर्माण 1031 ई. में विमलशाह ने करवाया था।
    • यह मंदिर प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को समर्पित है।
    • इसकी नक्काशी, स्तंभों, छतों और तोरणों पर की गई बारीक कलाकारी अद्भुत है।
  2. लूण वसाही मंदिर

    • यह मंदिर 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ को समर्पित है।
    • इसका निर्माण वास्तुपाल और तेजपाल, दो भाईयों और गुजरात के मंत्री, ने 1230 ई. में करवाया था।
    • इसमें संगमरमर की बारीक जालियों और गुंबदों की नक्काशी अत्यंत मनोहारी है।
  3. पीठलहर मंदिर

    • यह मंदिर 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है।
    • इसमें पीतल की एक विशाल मूर्ति स्थापित है।
  4. श्री महावीर स्वामी मंदिर

    • यह मंदिर अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित है।
    • इसमें भित्ति चित्रों और सुंदर सजावट का प्रयोग किया गया है।
  5. खartar वसाही मंदिर

    • यह मंदिर भी भगवान ऋषभदेव को समर्पित है।
    • इसमें कई मूर्तियाँ और कलात्मक स्तंभ हैं।

स्थापत्य और शिल्पकला:

दिलवाड़ा मंदिरों की सबसे विशेष बात इनकी संगमरमर पर की गई नाजुक और जीवंत नक्काशी है। हर स्तंभ, दीवार और छत पर की गई नक्काशी इतनी बारीक और सुंदर है कि पत्थर की कठोरता भी कोमल लगती है। मंदिरों की छतों पर बनी कुंजलिका (कमल के फूल जैसी नक्काशी) देखने योग्य है।

यहां की मूर्तियाँ, तोरण द्वार, स्तंभ, मंडप और जालियाँ शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण हैं। बिना मशीनों के उस समय की गई यह कला आश्चर्यचकित करती है।


धार्मिक महत्व:

इन मंदिरों में प्रतिदिन पूजा, ध्यान और आरती की जाती है। यहां विशेष अवसरों पर जैन समुदाय के हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह स्थान न केवल तीर्थ है, बल्कि जैन संस्कृति, इतिहास और कला का जीवंत प्रतीक भी है।


निष्कर्ष:

दिलवाड़ा जैन मंदिर भारतीय स्थापत्य कला, धार्मिक भक्ति और संस्कृति का गौरव है। यह स्थान न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि सभी कला और संस्कृति प्रेमियों के लिए एक अविस्मरणीय स्थल है।

दिलवाड़ा – जहाँ संगमरमर बोलता है और भक्ति झलकती है।

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