SATYUG
सत्ययुग
सत्ययुग, जिसे "कृतयुग" भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में वर्णित चार युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग) में से पहला और सबसे पवित्र युग है। यह युग धर्म, सत्य और आदर्शों का प्रतीक माना जाता है। ‘सत्य’ का अर्थ है 'सच' और ‘युग’ का अर्थ है 'काल'। अतः सत्ययुग का अर्थ है सत्य का युग — एक ऐसा समय जब संसार में केवल धर्म और न्याय का शासन था।
सत्ययुग का वर्णन:
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सत्ययुग की अवधि सबसे लंबी होती है। इसे लगभग 17 लाख 28 हजार वर्षों का युग माना गया है। इस युग में मानव जीवन अत्यंत दीर्घायु, स्वस्थ और सुखमय था। उस समय लोग किसी प्रकार के पाप, छल-कपट, या अधर्म से परिचित नहीं थे। चारों ओर प्रेम, शांति और समृद्धि का वातावरण था। धर्म के चारों स्तंभ — सत्य, दया, तप और दान — पूर्ण रूप से स्थिर थे।
सत्ययुग में मानव जीवन:
सत्ययुग में मनुष्य पूर्णतः सदाचारी और धर्मपरायण थे। लोग तपस्या, योग और ध्यान के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के निकट रहते थे। वर्ण व्यवस्था का पालन स्वाभाविक रूप से होता था, जिसमें सभी अपने धर्म और कर्तव्यों का पालन करते थे। राजा, प्रजा और संत सभी धर्म के मार्ग पर चलते थे। झूठ, चोरी, अन्याय जैसी बुराइयाँ इस युग में न के बराबर थीं।
सत्ययुग के प्रमुख घटनाक्रम:
इस युग में भगवान विष्णु ने चार अवतार लिए — मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह। इन अवतारों के माध्यम से उन्होंने धर्म की स्थापना और असुरों के अत्याचार का अंत किया। अनेक ऋषि-मुनि जैसे वशिष्ठ, अत्रि, भृगु आदि ने इसी युग में महान तपस्याएँ कीं। हिमालय जैसे पवित्र स्थलों पर साधु-संत ध्यान साधना करते थे और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करते थे।
धर्म और समाज:
सत्ययुग में समाज में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं था। सभी लोग समान भाव से एक-दूसरे के साथ व्यवहार करते थे। राजा प्रजा की सेवा में तत्पर रहते थे और समाज कल्याण को अपना परम कर्तव्य मानते थे। न्यायप्रियता, सत्यनिष्ठा और परोपकार की भावना सर्वत्र व्याप्त थी।
सत्ययुग का अंत:
जैसे-जैसे समय बीतता गया, मनुष्यों के भीतर धीरे-धीरे इच्छाएँ, अहंकार और मोह उत्पन्न होने लगे। इससे धर्म के स्तंभों में हल्की-हल्की गिरावट आने लगी। यही कारण बना कि सत्ययुग का समापन हुआ और त्रेतायुग का आरंभ हुआ, जिसमें धर्म के चार स्तंभों में से एक क्षीण हो गया।
निष्कर्ष:
सत्ययुग मानव सभ्यता का आदर्श युग था, जिसमें जीवन के उच्चतम मूल्यों का पालन होता था। आज के समय में भी यदि हम सत्ययुग के आदर्शों को अपनाएँ — सत्य, धर्म, दया और तप का अनुसरण करें — तो हम समाज में सुख, शांति और समृद्धि ला सकते हैं। सत्ययुग हमें यह सिखाता है कि सत्य और धर्म ही जीवन का वास्तविक आधार हैं।
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