PARYUSHAN PARV
पर्युषण पर्व –
पर्युषण पर्व जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण, पवित्र और आत्मशुद्धि का पर्व है। यह पर्व आत्मा की शुद्धि, संयम, तप, क्षमा और साधना का प्रतीक माना जाता है। ‘पर्युषण’ शब्द का अर्थ है – "परि" यानी चारों ओर और "उषण" यानी रहना; अर्थात् आत्मा के चारों ओर फैली बुराइयों, विकारों और पापों से दूर रहकर आत्मा की ओर लौटना।
पर्युषण पर्व दोनों जैन संप्रदायों – श्वेतांबर और दिगंबर – द्वारा मनाया जाता है, हालांकि इसकी अवधि और विधियाँ थोड़ी भिन्न होती हैं। श्वेतांबर संप्रदाय में यह पर्व 8 दिन तक चलता है और अंतिम दिन ‘सम्वत्सरी’ कहलाता है, जबकि दिगंबर संप्रदाय में इसे 10 दिन तक मनाया जाता है और इसे दशलक्षण धर्म के रूप में जाना जाता है।
पर्व का उद्देश्य:
पर्युषण का उद्देश्य है आत्मा की शुद्धि, तपस्या द्वारा कर्मों का क्षय, और दूसरों के प्रति क्षमा भाव को जाग्रत करना। इस समय जैन अनुयायी अपने दैनिक जीवन के व्यस्त कार्यक्रम से विराम लेकर साधना, तप, त्याग और आत्मनिरीक्षण में लीन होते हैं।
प्रमुख गतिविधियाँ:
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उपवास और तपस्या:
पर्युषण के दौरान जैन लोग उपवास, एकासन, बेले आदि व्रत करते हैं। कई लोग पूरे 8 या 10 दिन का निर्जल उपवास भी करते हैं। यह शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि का माध्यम माना जाता है। -
स्वाध्याय और प्रवचन:
इस पर्व में धर्मग्रंथों का अध्ययन, मुनियों के प्रवचन सुनना, और जीवन के नैतिक मूल्यों पर चिंतन करना महत्वपूर्ण होता है। -
प्रतिदिन पूजा और भक्ति:
मंदिरों में विशेष पूजन, अष्टप्रकारी पूजा, कल्पसूत्र पाठ और प्रवचन का आयोजन होता है। जैन मुनियों का सान्निध्य इस पर्व की आत्मा माना जाता है। -
प्रतिक्रमण:
यह आत्मचिंतन और आत्मस्वीकार की प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने किए गए पापों के लिए पश्चाताप करता है। -
क्षमावाणी (Forgiveness Day):
पर्युषण पर्व का समापन क्षमावाणी दिवस पर होता है, जो अत्यंत भावनात्मक और आध्यात्मिक दिन होता है। इस दिन जैन अनुयायी एक-दूसरे से "मिच्छामी दुक्कड़म्" कहकर क्षमा माँगते हैं, जिसका अर्थ होता है – “मैंने जानबूझकर या अनजाने में आपको किसी प्रकार का दुख दिया हो तो मुझे क्षमा करें।”
निष्कर्ष:
पर्युषण पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है – आत्मनिरीक्षण, आत्मशुद्धि और आत्मदर्शन की ओर। यह पर्व हमें अहिंसा, क्षमा, संयम, सत्य और तप जैसे गुणों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है। जैन धर्म का यह पर्व हमें यह सिखाता है कि सच्चा धर्म केवल पूजा-पाठ में नहीं, बल्कि दूसरों के प्रति करुणा और क्षमा भाव में है। इसीलिए पर्युषण पर्व को आत्मा की दिव्य आराधना का पर्व कहा जाता है।
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