GURU AMAR DAS JI

 

गुरु अमर दास जी – सेवा, समर्पण और समानता के प्रतीक 

गुरु अमर दास जी सिख धर्म के तीसरे गुरु थे। उनका जन्म 5 मई 1479 को बसरके गाँव (अमृतसर, पंजाब) में हुआ था। उनके पिता का नाम तेज भान और माता का नाम लक्ष्मी देवी था। वे एक धार्मिक और परंपरागत हिंदू परिवार से संबंध रखते थे। गुरु अमर दास जी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि सच्ची श्रद्धा और सेवा से किसी भी उम्र में आध्यात्मिक ऊँचाई प्राप्त की जा सकती है।

गुरु अमर दास जी ने अपना अधिकांश जीवन साधारण धार्मिक कार्यों और तीर्थयात्राओं में बिताया। वे 61 वर्ष की आयु में गुरु अंगद देव जी के संपर्क में आए और उनकी शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन गुरु की सेवा और सिख धर्म के प्रचार में समर्पित कर दिया। उनकी सेवा भावना और विनम्रता ने गुरु अंगद देव जी को अत्यंत प्रभावित किया। गुरु अंगद देव जी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और वे सिख धर्म के तीसरे गुरु बने।

गुरु अमर दास जी ने समाज सुधार की दिशा में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने जात-पात, ऊँच-नीच और स्त्री-पुरुष भेदभाव का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने सभी के लिए समानता का संदेश दिया और यह नियम बनाया कि जो भी उनके सत्संग में आए, उसे पहले लंगर (सामूहिक भोजन) में भाग लेना होगा, फिर गुरु से मिलना होगा। यह परंपरा आज भी "पंगत और संगत" के रूप में सिख धर्म में निभाई जाती है।

उन्होंने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए विशेष प्रयास किए। उन्होंने सती प्रथा और पर्दा प्रथा का विरोध किया तथा स्त्रियों को धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने की अनुमति दी। उनके काल में स्त्रियों को भी समान अधिकार और सम्मान दिया गया।

गुरु अमर दास जी ने 22 उपदेशक केंद्र (मंझियाँ) की स्थापना की, जिनमें महिलाओं को भी प्रचारक नियुक्त किया गया। उन्होंने गुरमुखी लिपि को और अधिक प्रचलित किया तथा सिख समुदाय को संगठित और अनुशासित रूप दिया।

उन्होंने गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की, जो सिख धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन गया। वहाँ एक बाोली (कुँए जैसी सीढ़ियों वाला जलस्रोत) का निर्माण भी कराया गया, जिसमें 84 सीढ़ियाँ थीं। मान्यता थी कि इनमें स्नान करने से मनुष्य के 84 लाख योनियों से मुक्ति मिलती है।

गुरु अमर दास जी का देहावसान 1 सितंबर 1574 को हुआ। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने दामाद गुरु रामदास जी को गुरु गद्दी सौंपी।

गुरु अमर दास जी का जीवन सच्ची सेवा, समर्पण और सामाजिक समानता का आदर्श है। उन्होंने न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी समाज को एक नई दिशा दी।

उनका संदेश था – "सब एक परमात्मा की संतान हैं, भेदभाव का कोई स्थान नहीं।"

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