DIGAMBER JAIN

 

दिगंबर जैन संप्रदाय 

जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय हैं – श्वेतांबर और दिगंबर। इनमें से दिगंबर संप्रदाय जैन धर्म की एक प्राचीन और तपस्वी परंपरा है। "दिगंबर" शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: "दिक्" यानी दिशा और "अंबर" यानी वस्त्र। इसका अर्थ है – जो चारों दिशाओं को ही अपना वस्त्र मानते हैं, अर्थात् निर्वस्त्र रहने वाले साधु

दिगंबर परंपरा की उत्पत्ति:

दिगंबर परंपरा की उत्पत्ति महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद लगभग 200-300 वर्षों के भीतर मानी जाती है। जैन इतिहास के अनुसार, महावीर स्वामी के पश्चात उनके अनुयायियों में मतभेद उत्पन्न हुए और यही मतभेद आगे चलकर दो प्रमुख संप्रदायों – दिगंबर और श्वेतांबर – में विभाजित हो गए।

दिगंबर संप्रदाय की विशेषताएँ:

  1. निर्वस्त्र साधु:
    दिगंबर साधु किसी भी प्रकार के वस्त्र धारण नहीं करते। उनका मानना है कि पूर्ण त्याग का प्रतीक निर्वस्त्रता है, जिससे अहंकार समाप्त होता है और आत्मा शुद्ध होती है।

  2. मोक्ष का मार्ग:
    दिगंबर मानते हैं कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए पूर्ण संयम और कठोर तपस्या आवश्यक है। वे यह भी मानते हैं कि स्त्रियाँ इस जीवन में मोक्ष नहीं पा सकतीं; उन्हें पहले पुरुष के रूप में जन्म लेना होगा।

  3. महावीर स्वामी की जीवन दृष्टि:
    दिगंबरों के अनुसार, भगवान महावीर ने कभी भी वस्त्र धारण नहीं किए और वे पूर्ण रूप से तपस्वी थे। उनका जीवन त्याग, तप और आत्मज्ञान का उदाहरण है।

  4. मूर्ति पूजा:
    दिगंबर मंदिरों में भगवान की मूर्तियाँ निर्वस्त्र और शांत मुद्रा में होती हैं। मूर्तियाँ सादगीपूर्ण होती हैं और उनमें किसी प्रकार की सजावट नहीं होती।

  5. धार्मिक ग्रंथ:
    दिगंबर परंपरा में प्राचीन आचार्यों द्वारा रचित अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं, जैसे –

    • समयसार
    • नियमसार
    • प्रवचनसार
    • अष्टपाहुड़
    • गोम्मटसार
  6. महिलाओं की भूमिका:
    दिगंबर परंपरा में स्त्रियों को दीक्षा नहीं दी जाती, लेकिन वे श्राविकाओं के रूप में धार्मिक जीवन जी सकती हैं।

प्रमुख आचार्य और तीर्थ:

दिगंबर परंपरा में अनेक महान आचार्य हुए हैं जैसे आचार्य कुंदकुंद, आचार्य समंतभद्र, आचार्य पूज्यपाद, जिन्होंने जैन दर्शन को गहराई से विकसित किया।
श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) दिगंबर जैनों का प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ बाहुबली (गोमतेश्वर) की 57 फीट ऊँची एक ही पत्थर से बनी मूर्ति है।

निष्कर्ष:

दिगंबर जैन संप्रदाय आत्मशुद्धि, वैराग्य, तप और त्याग की पराकाष्ठा को दर्शाता है। यह संप्रदाय यह मानता है कि आत्मा का मोक्ष केवल संयम, तप और पूर्ण त्याग से संभव है। दिगंबर संप्रदाय न केवल धार्मिक जीवन की एक कठोर साधना है, बल्कि यह सच्चे अर्थों में आत्मानुशासन और आंतरिक शांति का मार्ग भी है।

दिगंबर – त्याग, तप और मोक्ष की जैन परंपरा का अद्वितीय प्रतीक।

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