RELIGIOUS BOOKS OF JAINISM
जैन धर्म के धार्मिक ग्रंथ
जैन धर्म का साहित्य अत्यंत समृद्ध और विस्तृत है। जैन धर्म के अनुयायी दो मुख्य संप्रदायों में विभाजित हैं – दिगंबर और श्वेतांबर – और दोनों के धार्मिक ग्रंथों में कुछ अंतर पाए जाते हैं। फिर भी, दोनों की मान्यताएँ जैन दर्शन, अहिंसा, सत्य और आत्मज्ञान जैसे मूल सिद्धांतों पर आधारित होती हैं। नीचे जैन धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों का विवरण दिया गया है:
1. आगम सूत्र (Agam Sutra)
- यह श्वेतांबर संप्रदाय के सबसे प्रमुख ग्रंथ हैं।
- इन ग्रंथों में भगवान महावीर के उपदेशों और उनके गणधरों (मुख्य शिष्यों) के द्वारा संकलित शिक्षाओं का संग्रह है।
- आगम सूत्र कुल 45 ग्रंथों में विभाजित हैं:
- 11 अंग (मुख्य भाग)
- 12 उपांग
- मूल सूत्र
- चित्र सूत्र
- प्रकीर्ण सूत्र आदि
2. तत्त्वार्थ सूत्र (Tattvartha Sutra)
- यह जैन धर्म का एकमात्र ग्रंथ है जिसे दोनों संप्रदाय (श्वेतांबर और दिगंबर) स्वीकार करते हैं।
- इसकी रचना आचार्य उमास्वाति (या उमास्वामी) ने की थी।
- इसमें मोक्ष मार्ग, सात तत्व (जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष), धर्म, अहिंसा आदि विषयों को स्पष्ट रूप से बताया गया है।
3. समयसार (Samayasaar)
- इसकी रचना आचार्य कुंदकुंद ने की थी।
- यह दिगंबर संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ है।
- इसमें आत्मा के स्वभाव और मोक्ष के मार्ग का गहरा विश्लेषण किया गया है।
4. नियमसार, प्रवचन सार, अष्टपाहुड़
- ये सभी ग्रंथ भी आचार्य कुंदकुंद द्वारा लिखित हैं और आत्मा, संयम और वैराग्य पर केंद्रित हैं।
5. कल्पसूत्र (Kalpasutra)
- यह श्वेतांबर संप्रदाय का अत्यंत प्रसिद्ध ग्रंथ है।
- इसकी रचना भद्रबाहु स्वामी ने की थी।
- इसमें भगवान महावीर और अन्य तीर्थंकरों के जीवनवृत्त, संयम, और व्रतों का वर्णन है।
- पर्युषण पर्व के दौरान इस ग्रंथ का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।
6. भगवती सूत्र
- यह 11 अंगों में से एक है और सबसे बड़ा आगम है।
- इसमें महावीर स्वामी के उपदेशों के माध्यम से विभिन्न आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर दिया गया है।
7. उत्तराध्ययन सूत्र
- यह ग्रंथ श्वेतांबर परंपरा में महावीर स्वामी के अंतिम उपदेशों का संग्रह माना जाता है।
- इसमें जीवन के व्यवहारिक और नैतिक पक्षों की चर्चा की गई है।
निष्कर्ष:
जैन धर्म के ग्रंथ आत्मा की शुद्धि, अहिंसा, संयम, और मोक्ष की ओर प्रेरित करते हैं। ये ग्रंथ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि दार्शनिक और नैतिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान हैं।
जैन साहित्य – ज्ञान, दर्शन और मुक्ति का अमूल्य स्रोत।
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