KUNDALGRAM


कुंडलग्राम, जिसे आजकल वशालिका या बसुकुंड के नाम से जाना जाता है, बिहार राज्य के वैशाली जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। यह स्थान जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जन्मभूमि के रूप में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह स्थान वैशाली नगर के समीप स्थित है और जैन अनुयायियों के लिए तीर्थस्थल के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भगवान महावीर का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व में कुंडलग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था। वे ज्ञातवंश के क्षत्रिय थे और उनके कुल का शासन लिच्छवी गणराज्य पर था। कुंडलग्राम उसी लिच्छवी गणराज्य का एक समृद्ध और सुंदर नगर था। यही वह स्थान था जहाँ महावीर स्वामी ने अपने बाल्यकाल और युवावस्था के अनेक वर्ष बिताए।

भगवान महावीर के जन्म से पहले, त्रिशला माता ने 14 शुभ स्वप्न देखे थे, जो यह दर्शाते थे कि उनके गर्भ में एक महान आत्मा का जन्म होने वाला है। महावीर स्वामी का बचपन अत्यंत शांत, संयमी और ज्ञानवर्धक रहा। यद्यपि वे राजपरिवार में जन्मे थे, परंतु उनका मन सदा से ही वैराग्य और ध्यान में रमा रहता था। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने कुंडलग्राम को त्याग कर संन्यास ले लिया और आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े।

आज कुंडलग्राम में भगवान महावीर से जुड़े कई पुरातात्विक और धार्मिक स्थल देखे जा सकते हैं। यहाँ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक भव्य मंदिर भी स्थित है, जहाँ भगवान महावीर की जन्मस्थली का स्मरण किया जाता है। हर वर्ष महावीर जयंती के अवसर पर यहाँ विशेष पूजा, यात्रा और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु भाग लेते हैं।

कुंडलग्राम न केवल जैन धर्म का एक पवित्र स्थान है, बल्कि यह भारत की प्राचीन सभ्यता और धर्म परंपरा का भी जीता-जागता उदाहरण है। यह स्थान आज भी शांति, तपस्या और त्याग की प्रेरणा देता है और हमें भगवान महावीर के सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा देता है।

कुंडलग्राम – जैन धर्म की दिव्य भूमि, तप और त्याग की प्रतीक।

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