SHWETAMBAR JAIN
श्वेतांबर जैन
जैन धर्म दो मुख्य संप्रदायों में विभाजित है – श्वेतांबर और दिगंबर। इन दोनों संप्रदायों की मूल शिक्षाएं समान हैं, परंतु कुछ धार्मिक आस्थाओं, जीवनशैली और परंपराओं में भिन्नता पाई जाती है। श्वेतांबर संप्रदाय जैन धर्म का एक प्रमुख भाग है और इसका नाम "श्वेत + अम्बर" से बना है, जिसका अर्थ है "सफेद वस्त्र पहनने वाले"।
श्वेतांबर परंपरा की उत्पत्ति:
श्वेतांबर परंपरा की शुरुआत लगभग मौर्य काल (ईसा पूर्व 3री शताब्दी) के बाद मानी जाती है। यह परंपरा मानती है कि जब जैन धर्म का साहित्य मौखिक रूप से सुरक्षित नहीं रह पा रहा था, तब वलभी (गुजरात) में एक महासभा हुई जहाँ श्वेतांबर मुनियों ने भगवान महावीर के उपदेशों को आगम सूत्रों के रूप में लिपिबद्ध किया। इस परंपरा के प्रमुख आचार्यों में भद्रबाहु, देवर्धिगणि क्षमाश्रमण आदि प्रसिद्ध हैं।
मुख्य विशेषताएँ:
- वस्त्रधारण – श्वेतांबर मुनि और आर्यिकाएँ (महिला साध्वी) सफेद वस्त्र पहनते हैं। यही इस संप्रदाय की सबसे बड़ी पहचान है।
- स्त्रियों की दीक्षा – श्वेतांबर संप्रदाय मानता है कि स्त्रियाँ भी मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं और उन्हें दीक्षा दी जाती है। इसीलिए इसमें साध्वियों की संख्या अधिक होती है।
- भगवान महावीर का जीवन – श्वेतांबर मानते हैं कि भगवान महावीर ने विवाह किया था और वे सफेद वस्त्र पहनते थे।
- मूर्ति पूजा – श्वेतांबर मंदिरों में भगवान की मूर्तियाँ वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होती हैं।
- ग्रंथ – श्वेतांबरों के धार्मिक ग्रंथों में आगम साहित्य, कल्पसूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र आदि प्रमुख हैं।
उपसंप्रदाय:
श्वेतांबर संप्रदाय में भी तीन उपसंप्रदाय होते हैं:
- मूर्तिपूजक – जो मूर्तियों की पूजा करते हैं।
- स्थानकवासी – जो मूर्ति पूजा नहीं करते और केवल ध्यान, तप और प्रवचन को महत्व देते हैं।
- तेरापंथी – एक अनुशासित शाखा, जिसकी स्थापना आचार्य भिक्षु ने की थी।
निष्कर्ष:
श्वेतांबर संप्रदाय जैन धर्म की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को आज भी जीवित रखे हुए है। यह संप्रदाय अहिंसा, तप, संयम और ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
श्वेतांबर – सफेद वस्त्र में तप, त्याग और धर्म का प्रतीक।
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