ASHTDHATU

 अष्टधातु (Ashtadhatu)

अष्टधातु भारतीय परंपरा में प्रयुक्त धातुओं का एक पवित्र और महत्वपूर्ण मिश्रण है। “अष्ट” का अर्थ है आठ और “धातु” का अर्थ है धातुएँ। इस प्रकार अष्टधातु आठ धातुओं के संयोजन से बनती है। प्राचीन काल से ही इसका उपयोग देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, पूजा-पाठ के पात्र, यंत्र और धार्मिक वस्तुएँ बनाने में किया जाता रहा है। इसे शुभ, शक्तिशाली और आध्यात्मिक ऊर्जा से युक्त माना जाता है।

परंपरागत रूप से अष्टधातु में सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा, सीसा, टिन, जस्ता और पारा को सम्मिलित किया जाता है। कुछ स्थानों पर पारे के स्थान पर अन्य धातु या मिश्र धातु का प्रयोग भी किया जाता है। इन धातुओं को एक विशेष विधि से निश्चित अनुपात में मिलाया जाता है, जिससे एक मजबूत और टिकाऊ मिश्रधातु तैयार होती है।

धार्मिक दृष्टि से अष्टधातु का विशेष महत्व है। मान्यता है कि आठ धातुएँ मिलकर आठ प्रकार की ऊर्जा और ग्रहों का संतुलन बनाती हैं। इसी कारण अष्टधातु से बनी मूर्तियों को अधिक प्रभावशाली और फलदायी माना जाता है। हिंदू, बौद्ध और जैन परंपराओं में अष्टधातु की मूर्तियों का व्यापक प्रयोग देखने को मिलता है।

आयुर्वेद और ज्योतिष में भी अष्टधातु का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि अष्टधातु से बने कड़े, अंगूठियाँ या ताबीज पहनने से शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा होती है।

कला और शिल्प के क्षेत्र में अष्टधातु का उपयोग उत्कृष्ट धातुकला का उदाहरण प्रस्तुत करता है। प्राचीन मूर्तिकार अष्टधातु से अद्भुत कलाकृतियाँ बनाते थे, जो आज भी मंदिरों और संग्रहालयों में देखी जा सकती हैं। इस प्रकार अष्टधातु धार्मिक, सांस्कृतिक और कलात्मक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

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