JOHN LANG

 जॉन लैंग (John Lang) 

जॉन लैंग उन्नीसवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ पत्रकार, लेखक और नाटककार थे, जिन्होंने भारत में रहते हुए ब्रिटिश शासन की नीतियों की खुलकर आलोचना की। उनका जन्म 1816 में इंग्लैंड में हुआ था। वे उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति थे और साहित्य तथा पत्रकारिता में गहरी रुचि रखते थे। बाद में वे भारत आए और यहीं से उन्होंने अपने विचारों को निर्भीक रूप से अभिव्यक्त किया।

भारत में रहते हुए जॉन लैंग ने देखा कि ब्रिटिश नीलहे किसानों और भारतीय कृषकों का किस प्रकार शोषण कर रहे थे। नील की खेती के लिए किसानों पर जबरन दबाव डाला जाता था, जिससे उन्हें आर्थिक और सामाजिक नुकसान उठाना पड़ता था। जॉन लैंग ने इस अन्याय के विरुद्ध अपनी कलम उठाई और अंग्रेज़ी भाषा के अख़बारों में लेख लिखकर नील प्रथा की कड़ी आलोचना की। वे उन शुरुआती यूरोपीय पत्रकारों में से थे, जिन्होंने भारतीय किसानों के पक्ष में आवाज़ उठाई।

जॉन लैंग का मानना था कि शासन का उद्देश्य जनता का कल्याण होना चाहिए, न कि उसका शोषण। उनके लेखों में ब्रिटिश अधिकारियों की नीतियों पर तीखा व्यंग्य और तार्किक आलोचना देखने को मिलती है। उनके लेखों का प्रभाव यह हुआ कि नील प्रथा और किसानों की स्थिति पर सार्वजनिक बहस शुरू हुई। आगे चलकर यही मुद्दा नील विद्रोह (Indigo Revolt) का एक महत्वपूर्ण आधार बना।

साहित्य के क्षेत्र में भी जॉन लैंग का योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने नाटक और उपन्यास भी लिखे, जिनमें सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाएँ स्पष्ट रूप से झलकती हैं। वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे और किसी भी प्रकार के दमन के विरोधी थे।

जॉन लैंग का निधन 1864 में हुआ, लेकिन उनके विचार और लेखन आज भी प्रासंगिक माने जाते हैं। भारतीय इतिहास में उन्हें एक ऐसे विदेशी बुद्धिजीवी के रूप में याद किया जाता है, जिसने सत्य और न्याय के पक्ष में निर्भीक होकर आवाज़ उठाई और भारतीय किसानों के संघर्ष को दुनिया के सामने रखा।

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