MANIKARNIKA GHAT

 मणिकर्णिका घाट 

मणिकर्णिका घाट वाराणसी का सबसे प्राचीन, प्रसिद्ध और पवित्र घाट माना जाता है। यह घाट गंगा नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख केंद्र है। मान्यता है कि मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार होने से आत्मा को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। इसी कारण इसे मोक्षदायिनी भूमि कहा जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने यहाँ तपस्या के समय अपने चक्र से एक कुंड का निर्माण किया था। इसी स्थान पर भगवान शिव की कान की मणि गिर गई थी, इसलिए इस घाट का नाम “मणिकर्णिका” पड़ा। यह स्थान भगवान शिव और माता पार्वती से भी जुड़ा हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव यहाँ मृत आत्माओं को तारक मंत्र का उपदेश देते हैं।

मणिकर्णिका घाट का सबसे प्रमुख दृश्य यहाँ जलती चिताएँ हैं। दिन-रात यहाँ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया चलती रहती है। यह दृश्य जीवन की नश्वरता और मृत्यु की सच्चाई का बोध कराता है। यहाँ अमीर-गरीब, जाति-धर्म का कोई भेद नहीं होता; सभी को समान रूप से अग्नि के हवाले किया जाता है।

घाट के पास मणिकर्णिका कुंड स्थित है, जिसका धार्मिक महत्व अत्यंत अधिक है। अंतिम संस्कार से पहले इस कुंड के जल का उपयोग पवित्रता के प्रतीक के रूप में किया जाता है। इसके अतिरिक्त आसपास कई छोटे-बड़े मंदिर भी स्थित हैं, जो इस क्षेत्र को और अधिक आध्यात्मिक बनाते हैं।

मणिकर्णिका घाट केवल शोक का स्थान नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के दर्शन का केंद्र है। यहाँ आकर मनुष्य को जीवन की क्षणभंगुरता का गहरा अनुभव होता है। यह घाट भारतीय संस्कृति, दर्शन और धार्मिक आस्था का जीवंत प्रतीक है।

इस प्रकार मणिकर्णिका घाट वाराणसी की आत्मा कहा जाता है, जहाँ मृत्यु भी मोक्ष का मार्ग बन जाती है।

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