DAMODAR RAO CHAPEKAR
दामोदर राव चापेकर – लगभग 300 शब्द
दामोदर राव चापेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आरंभिक क्रांतिकारियों में से एक थे। उनका जन्म 24 जून 1869 को महाराष्ट्र के पुणे जिले में हुआ था। वे चापेकर बंधुओं—दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव—में सबसे बड़े थे। देशभक्ति, आत्मसम्मान और विदेशी शासन के प्रति विरोध की भावना उनके जीवन का मूल आधार थी।
दामोदर राव का पालन-पोषण धार्मिक और देशप्रेमी वातावरण में हुआ। उन्होंने कम उम्र में ही भारत पर अंग्रेज़ी शासन की दमनकारी नीतियों को समझ लिया था। उस समय पुणे में प्लेग महामारी फैली हुई थी और अंग्रेज़ अधिकारी रैंड (W.C. Rand) द्वारा अपनाए गए कठोर और अपमानजनक उपायों से जनता में भारी आक्रोश था। भारतीयों के घरों की तलाशी, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया जा रहा था।
इन अत्याचारों से व्यथित होकर दामोदर राव चापेकर ने अपने भाइयों के साथ मिलकर अंग्रेज़ी अत्याचार के विरुद्ध सशस्त्र प्रतिरोध का मार्ग चुना। 22 जून 1897 को पुणे में क्वीन विक्टोरिया की हीरक जयंती के अवसर पर दामोदर राव और उनके भाई बालकृष्ण ने प्लेग कमिश्नर रैंड और लेफ्टिनेंट आयर्स्ट की हत्या कर दी। यह घटना भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ मानी जाती है।
घटना के बाद दामोदर राव को गिरफ्तार कर लिया गया। मुकदमे के दौरान उन्होंने अपने कृत्य को अन्याय के विरुद्ध प्रतिशोध बताया और किसी भी प्रकार की क्षमा याचना से इनकार कर दिया। 18 अप्रैल 1898 को दामोदर राव चापेकर को फाँसी दे दी गई। बाद में उनके भाइयों को भी प्राणदंड मिला।
दामोदर राव चापेकर का बलिदान भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा बना। उन्होंने यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता केवल याचना से नहीं, बल्कि साहस और त्याग से प्राप्त होती है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका नाम एक निर्भीक क्रांतिकारी के रूप में सदैव सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है।
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