GONU JHA
गोनू झा – मिथिला के बुद्धिमान लोकनायक
गोनू झा मिथिला की लोककथाओं में एक अत्यंत प्रसिद्ध और चतुर पात्र हैं, जिन्हें अक्सर “बिहार के बीरबल” कहा जाता है। यह उपाधि इसलिए दी जाती है क्योंकि गोनू झा अपनी तेज बुद्धि, हाज़िरजवाबी और व्यंग्यात्मक जवाबों के लिए जाने जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे बादशाह अकबर के दरबार में बीरबल की प्रसिद्धि थी।
इतिहास और लोककथाओं के अनुसार गोनू झा 13वीं–14वीं सदी में मिथिला (आधुनिक बिहार के दरभंगा जिले) के भरवाड़ा गाँव से थे। वे राजा के दरबार में एक विदूषक, सलाहकार और बुद्धिमान पात्र के रूप में कार्यरत थे। गोनू झा की कहानियाँ मुख्यतः उनकी चतुराई और बुद्धि से सम्बन्धित हैं, जिनमें वे कठिन समस्याओं को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से हल करते हैं।
उनकी कहानियाँ सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनमें सामाजिक न्याय, लोकनीति और जीवन के गहरे अर्थ भी छुपे हैं। उदाहरण के लिए एक प्रसिद्ध किस्सा है जिसमें वे न्यायिक समस्या को अपनी चालाकी से हल करते हैं और सच्चाई सामने लाते हैं। इस तरह की कथाएँ आज भी मिथिला में गाँव-गाँव, घर-घर सुनाई जाती हैं।
गोनू झा को केवल हास्यकारी नहीं माना जाता; कई विलक्षण किस्सों में उन्हें विद्वान, दार्शनिक और एक समझदार व्यक्ति के रूप में भी दर्शाया गया है। मिथिला की लोक परंपरा में उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी चतुराई से बड़े-बड़े दरबारी भी चकित हो जाते थे।
आज भी मिथिलांचल में जब कोई व्यक्ति किसी समस्या को तेज़ बुद्धि से हल करता है, तो लोग प्राधान्य से कह देते हैं, “यह तो बड़ा गोनू झा बन रहा है!” उनके नाम पर मिथिला में स्मारक भी स्थापित किए गए हैं और उनके किस्सों को साहित्य, नाट्य और लोककथाओं के रूप में संरक्षित करने के प्रयास जारी हैं
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