GHICHA YARN

 घीचा यार्न (Ghicha Yarn)

घीचा यार्न एक पारंपरिक और विशिष्ट प्रकार का रेशमी धागा है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से हथकरघा और पारंपरिक वस्त्रों के निर्माण में किया जाता है। यह यार्न विशेष रूप से भारत के पूर्वी और मध्य भागों, जैसे ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल में प्रचलित है। घीचा यार्न की पहचान इसकी मोटी, खुरदरी बनावट और प्राकृतिक रूप से अनियमित संरचना से होती है।

घीचा यार्न का निर्माण रेशम के कोकून से निकाले गए बचे हुए रेशों से किया जाता है। जब मुलायम और चिकने रेशमी धागे (रील्ड सिल्क) निकाल लिए जाते हैं, तब जो छोटे, टूटे या मोटे रेशे बच जाते हैं, उनसे घीचा यार्न तैयार किया जाता है। इसी कारण इसे “वेस्ट सिल्क” या “रफ सिल्क” से बना यार्न भी कहा जाता है। यह पूरी तरह प्राकृतिक होता है और इसमें किसी प्रकार के रासायनिक पदार्थों का प्रयोग नहीं किया जाता।

वस्त्र उद्योग में घीचा यार्न का विशेष महत्व है। इससे साड़ियाँ, दुपट्टे, शॉल, कुर्ता कपड़ा, स्टोल और सजावटी वस्त्र बनाए जाते हैं। ओडिशा की संबलपुरी और कोटपाड़ा साड़ियाँ, तथा झारखंड और छत्तीसगढ़ की जनजातीय बुनाई में घीचा यार्न का व्यापक उपयोग होता है। इसकी खुरदरी बनावट वस्त्रों को एक अलग सौंदर्य और पारंपरिक पहचान देती है।

घीचा यार्न पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक रेशों से बनता है और रेशम उद्योग के अपशिष्ट का उपयोग करता है। इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है और कचरे में कमी आती है।

सांस्कृतिक दृष्टि से घीचा यार्न ग्रामीण और आदिवासी जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह न केवल आजीविका का साधन है, बल्कि भारत की पारंपरिक हथकरघा विरासत और स्वदेशी वस्त्र संस्कृति का भी महत्वपूर्ण प्रतीक है।

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