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अवधी भाषा – परिचय
अवधी हिंदी की एक प्रमुख उपभाषा है, जो उत्तर भारत में व्यापक रूप से बोली जाती है। यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वी भागों—अयोध्या, लखनऊ, फैज़ाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली, उन्नाव और आसपास के क्षेत्रों—में प्रचलित है। अवधी का नाम प्राचीन अयोध्या (अवध) क्षेत्र से जुड़ा हुआ है।
अवधी भाषा का इतिहास अत्यंत समृद्ध है। यह मध्यकाल में विकसित हुई और भक्तिकाल के साहित्य में इसका विशेष योगदान रहा। अवधी ने हिंदी साहित्य को अमर कृतियाँ दीं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस अवधी भाषा की सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली कृति है। इसके अतिरिक्त कवितावली, गीतावली और विनय पत्रिका जैसी रचनाओं में भी अवधी के तत्व मिलते हैं। सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत भी अवधी साहित्य की महत्वपूर्ण कृति है।
भाषिक दृष्टि से अवधी सरल, मधुर और भावपूर्ण मानी जाती है। इसकी शब्दावली में संस्कृत, प्राकृत, अरबी और फ़ारसी शब्दों का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है। अवधी में लोकजीवन, भक्ति, प्रेम और नैतिक मूल्यों का सजीव चित्रण मिलता है। इसका व्याकरण बोलचाल के अनुकूल है, जिससे यह जनसामान्य में सहज रूप से प्रचलित रही।
सांस्कृतिक दृष्टि से अवधी क्षेत्र भारतीय परंपरा का महत्वपूर्ण केंद्र है। रामलीला, लोकगीत, कजरी, बिरहा और विभिन्न लोकनृत्य अवधी संस्कृति की पहचान हैं। धार्मिक पर्व, मेले और उत्सव इस भाषा के माध्यम से सामाजिक जीवन को जोड़ते हैं।
आधुनिक समय में मानक हिंदी के प्रभाव से अवधी का प्रयोग कुछ हद तक कम हुआ है, फिर भी यह आज भी ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में जीवंत है। अवधी भाषा हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर मानी जाती है, जिसने जनभाषा को साहित्यिक ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
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