TIRHUT
तिरहुत (तिरुत/तिरभुक्ति) – एक ऐतिहासिक क्षेत्र
तिरहुत, जिसे प्राचीन ग्रंथों में तिरभुक्ति कहा गया है, बिहार का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है। यह मुख्य रूप से आज के उत्तरी बिहार में स्थित मिथिला क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। तिरहुत शब्द का प्रयोग मध्यकाल में प्रशासनिक और भौगोलिक इकाई के रूप में किया जाता था। मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, दरभंगा, समस्तीपुर और मधुबनी जैसे जिले ऐतिहासिक रूप से तिरहुत क्षेत्र में शामिल रहे हैं।
तिरहुत का उल्लेख प्राचीन और मध्यकालीन अभिलेखों तथा साहित्य में मिलता है। गुप्त काल और उसके बाद यह क्षेत्र शिक्षा, संस्कृति और व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र रहा। मध्यकाल में तिरहुत पर कर्नाट वंश और बाद में ओइनवार वंश का शासन रहा, जिन्होंने मिथिला की सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षण दिया। इसी काल में मैथिली भाषा और साहित्य का विकास तेज़ी से हुआ।
सांस्कृतिक दृष्टि से तिरहुत का अत्यंत समृद्ध महत्व है। यह क्षेत्र मैथिली भाषा, लोकगीत, लोकनृत्य और परंपरागत रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। मधुबनी (मिथिला) पेंटिंग, पंजी प्रथा, पारंपरिक विवाह संस्कार और धार्मिक अनुष्ठान तिरहुत की पहचान हैं। यहां रामायण से जुड़ी कई मान्यताएँ भी प्रचलित हैं, क्योंकि सीता माता का जन्म मिथिला में माना जाता है।
आर्थिक रूप से तिरहुत क्षेत्र कृषि प्रधान रहा है। गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी और बागमती जैसी नदियाँ इस क्षेत्र की भूमि को उपजाऊ बनाती हैं। धान, गेहूं, मक्का और दलहन की खेती यहां व्यापक रूप से होती है। साथ ही, हस्तशिल्प और चित्रकला भी आजीविका का स्रोत रही है।
कुल मिलाकर तिरहुत न केवल एक भौगोलिक क्षेत्र है, बल्कि यह बिहार की ऐतिहासिक, भाषाई और सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक है। इसका योगदान भारतीय इतिहास और संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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