PALI LANGUAGE

 पाली भाषा – परिचय

पाली एक प्राचीन भारतीय भाषा है, जिसका विशेष महत्व बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। इसे थेरवाद बौद्ध परंपरा की पवित्र भाषा माना जाता है। भगवान गौतम बुद्ध के उपदेशों को पाली भाषा में संकलित किया गया, जो आगे चलकर त्रिपिटक के रूप में प्रसिद्ध हुए। पाली भाषा का प्रयोग मुख्य रूप से धार्मिक, दार्शनिक और नैतिक ग्रंथों में हुआ है।

पाली भाषा की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। सामान्यतः इसे मध्य इंडो-आर्य भाषा माना जाता है, जो संस्कृत और प्राकृत के बीच की कड़ी है। पाली संस्कृत की अपेक्षा सरल और जनसामान्य के अधिक निकट मानी जाती है। इसी कारण बुद्ध ने अपने उपदेश पाली जैसी लोकभाषा में दिए, ताकि आम लोग उन्हें समझ सकें।

व्याकरण की दृष्टि से पाली भाषा में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, लिंग और वचन की स्पष्ट व्यवस्था है। इसका शब्द भंडार संस्कृत से मिलता-जुलता है, लेकिन उच्चारण और रूप सरल हैं। पाली भाषा मूलतः बोली जाने वाली भाषा थी, जिसे बाद में लिखित रूप दिया गया। समय के साथ इसे विभिन्न लिपियों में लिखा गया, जैसे ब्राह्मी, सिंहली, देवनागरी, थाई और बर्मी लिपि।

पाली साहित्य अत्यंत समृद्ध है। त्रिपिटक—विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक—पाली साहित्य की आधारशिला हैं। इनके अतिरिक्त दीपवंश, महावंश, मिलिंदपन्ह जैसे ग्रंथ भी पाली में रचित हैं। इन ग्रंथों में धर्म, नैतिकता, दर्शन और समाज का गहन विवेचन मिलता है।

आज भी पाली भाषा का अध्ययन भारत, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार और अन्य बौद्ध देशों में किया जाता है। यह भाषा न केवल बौद्ध धर्म की समझ के लिए, बल्कि भारतीय भाषाओं के विकास को समझने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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