VIDYAPATI

 विद्यापति: मैथिली साहित्य के अमर कवि

विद्यापति भारतीय साहित्य के महान कवि और विद्वान माने जाते हैं। उन्हें मैथिली भाषा का सर्वश्रेष्ठ और सबसे प्रतिष्ठित कवि कहा जाता है। उनका जन्म लगभग 14वीं शताब्दी में मिथिला क्षेत्र (वर्तमान बिहार) में माना जाता है। विद्यापति ने न केवल मैथिली, बल्कि संस्कृत और अवहट्ट भाषा में भी रचनाएँ कीं। उनके काव्य में भक्ति, प्रेम और श्रृंगार का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

विद्यापति मुख्य रूप से भक्तिकाल के कवि माने जाते हैं। उनकी रचनाओं में भगवान शिव और राधा-कृष्ण की भक्ति का विशेष स्थान है। विशेष रूप से राधा-कृष्ण के प्रेम पर आधारित उनके पदों ने उन्हें अपार लोकप्रियता दिलाई। इन पदों में मानवीय भावनाओं, प्रेम की कोमलता, विरह और मिलन का अत्यंत सजीव चित्रण मिलता है। उनके काव्य में श्रृंगार रस की प्रधानता है, लेकिन वह आध्यात्मिक भाव से जुड़ा हुआ है।

विद्यापति की भाषा सरल, मधुर और भावपूर्ण है। उन्होंने लोकभाषा मैथिली को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। उनके गीत आज भी मिथिला ही नहीं, बल्कि बंगाल और ओडिशा तक गाए जाते हैं। बंगाल में चैतन्य महाप्रभु और वैष्णव संतों पर विद्यापति के पदों का गहरा प्रभाव पड़ा।

उनकी प्रमुख कृतियों में कीर्तिलता, कीर्तिपताका, शैव सर्वस्व सार और गंगा वाक्यावली आदि शामिल हैं। कीर्तिलता और कीर्तिपताका ऐतिहासिक और सामाजिक जीवन का वर्णन करती हैं, जबकि उनके पदावली गीत भक्ति और प्रेम की भावधारा से ओत-प्रोत हैं।

विद्यापति को “मैथिली कवि कोकिल” की उपाधि दी गई है। उनका योगदान न केवल मैथिली साहित्य, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय साहित्य के लिए अमूल्य है। उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों और श्रोताओं को भावनात्मक रूप से समृद्ध करती हैं और भारतीय भक्ति परंपरा में उनका स्थान सदैव स्मरणीय रहेगा।

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