CHANDUA
चांदुआ ओडिशा की एक पारंपरिक और प्रसिद्ध वस्त्र कला है, जिसे वहाँ की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यह एक विशेष प्रकार का रंगीन कपड़ा होता है, जिस पर धार्मिक, पौराणिक और ज्यामितीय आकृतियाँ बनाई जाती हैं। चांदुआ मुख्य रूप से जगन्नाथ संस्कृति से जुड़ा हुआ है और पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देवताओं के श्रृंगार और सजावट में इसका व्यापक उपयोग किया जाता है।
चांदुआ वस्त्र की सबसे बड़ी विशेषता इसकी निर्माण तकनीक है। यह कपड़ा प्रायः इकट (Ikat) पद्धति से तैयार किया जाता है, जिसमें धागों को पहले बाँधकर रंगा जाता है और फिर उनसे कपड़ा बुना जाता है। इस प्रक्रिया में अत्यधिक कौशल, धैर्य और समय की आवश्यकता होती है। चांदुआ में लाल, पीला, काला और सफेद रंगों का विशेष महत्व होता है, जिन्हें शुभ और धार्मिक माना जाता है। इन रंगों से बनाए गए प्रतीक और डिज़ाइन कपड़े को विशिष्ट पहचान देते हैं।
चांदुआ का उपयोग केवल वस्त्र के रूप में ही नहीं, बल्कि मंदिरों में परदे, झंडे, छतरियाँ और दीवार सजावट के लिए भी किया जाता है। विशेष अवसरों, पर्व-त्योहारों और रथ यात्रा जैसे आयोजनों में चांदुआ की माँग बढ़ जाती है। यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी कारीगर परिवारों द्वारा संरक्षित की गई है, जिससे इसकी परंपरा आज तक जीवित है।
आधुनिक समय में चांदुआ को परंपरा के साथ-साथ नए रूप में भी प्रस्तुत किया जा रहा है। इससे साड़ी, दुपट्टा, दीवार सजावट और फैशन से जुड़े उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जिससे कारीगरों को रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं। चांदुआ न केवल एक कपड़ा है, बल्कि ओडिशा की धार्मिक आस्था, कलात्मक कौशल और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है।
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