SAMBALPURI SILK
संभलपुरी सिल्क – ओडिशा की पारंपरिक बुनाई कला
संभलपुरी सिल्क ओडिशा राज्य की एक प्रसिद्ध और विशिष्ट हथकरघा कला है, जो विशेष रूप से पश्चिमी ओडिशा के संभलपुर, बरगढ़ और सोनपुर क्षेत्रों से जुड़ी हुई है। यह रेशमी कपड़ा अपनी सुंदरता, टिकाऊपन और अनोखे इकत (Ikat) डिज़ाइन के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। संभलपुरी सिल्क ओडिशा की सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है।
संभलपुरी सिल्क की सबसे बड़ी विशेषता इसकी बुनाई तकनीक है। इसमें धागों को पहले रंगा जाता है और फिर उन्हें करघे पर बुनकर कपड़ा तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया को “बांधनी इकत” तकनीक कहा जाता है। डिज़ाइन बनने से पहले धागों को विशेष तरीके से बाँधा जाता है, जिससे रंगाई के समय सुंदर आकृतियाँ उभरती हैं। यह प्रक्रिया अत्यंत मेहनत और कौशल की मांग करती है।
संभलपुरी सिल्क साड़ियों पर शंख, चक्र, फूल, पशु-पक्षी और ज्यामितीय आकृतियों जैसे पारंपरिक ओडिशा प्रतीक उकेरे जाते हैं। इन डिज़ाइनों में स्थानीय संस्कृति, लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं की झलक मिलती है। प्राकृतिक रंगों का प्रयोग इस कपड़े को और भी आकर्षक तथा पर्यावरण के अनुकूल बनाता है।
संभलपुरी सिल्क न केवल साड़ियों तक सीमित है, बल्कि इससे दुपट्टे, सलवार सूट, धोती और सजावटी वस्त्र भी बनाए जाते हैं। त्योहारों, विवाह और विशेष अवसरों पर यह पहनावा बहुत पसंद किया जाता है। इसकी मांग देश के साथ-साथ विदेशों में भी बढ़ रही है।
संभलपुरी सिल्क ने ओडिशा के बुनकरों को आजीविका और पहचान प्रदान की है। सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों से इस कला को संरक्षण और प्रोत्साहन मिल रहा है। इस प्रकार संभलपुरी सिल्क पारंपरिक कला, परिश्रम और सांस्कृतिक विरासत का सुंदर संगम है।
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