RANA SANGA
राणा सांगा: मेवाड़ के वीर योद्धा
राणा सांगा (संवत् 1540 – 1572, ईस्वी 1482 – 1528) मेवाड़ के महान योद्धा और राजपूताने के शूरवीर शासक थे। वे सिसोदिया वंश के राजा थे और अपनी वीरता, युद्ध कौशल और रणनीतिक क्षमता के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े और मुगलों, अफगानों तथा लोदी वंश के शासकों के खिलाफ संघर्ष किया।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
राणा सांगा का जन्म 1482 ईस्वी में महाराणा रायमल के पुत्र के रूप में हुआ था। वे बचपन से ही साहसी, पराक्रमी और युद्ध-कला में निपुण थे। उन्होंने अपने भाइयों के साथ संघर्ष करते हुए मेवाड़ की गद्दी प्राप्त की। उनके शासनकाल में मेवाड़ एक शक्तिशाली राज्य बनकर उभरा।
वीरता और युद्ध कौशल
राणा सांगा ने अपने जीवन में कई कठिन युद्ध लड़े और हर बार अपनी वीरता का परिचय दिया। वे राजपूतों को संगठित करने और विदेशी आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा करने में सफल रहे। उन्होंने दिल्ली सल्तनत, गुजरात के सुल्तान, मालवा के अफगान शासकों और मुगलों के खिलाफ युद्ध किए।
महत्वपूर्ण युद्ध
1. खानवा का युद्ध (1527)
राणा सांगा का सबसे प्रसिद्ध युद्ध खानवा का युद्ध था, जो 17 मार्च 1527 को बाबर के खिलाफ लड़ा गया था।
- इस युद्ध में राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूतों और अफगान सरदारों की संयुक्त सेना थी।
- हालांकि उनकी सेना बड़ी थी, लेकिन बाबर की तोपखाने और युद्ध तकनीक के कारण वे पराजित हो गए।
- बाबर ने इस युद्ध के बाद गाजी की उपाधि धारण की और भारत में मुगलों की सत्ता मजबूत हुई।
2. गागरोल और बाड़ी का युद्ध
- राणा सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को पराजित कर मालवा पर कब्ज़ा किया।
- उन्होंने गुजरात और दिल्ली सल्तनत के शासकों को भी कई बार हराया।
राणा सांगा की वीरता और बलिदान
राणा सांगा के शरीर पर 80 से अधिक घावों के निशान थे, जो उनकी वीरता का प्रमाण थे।
- वे एक हाथ से, एक पैर से अपंग होने के बावजूद घोड़े पर चढ़कर युद्ध लड़ते थे।
- बाबर से पराजय के बाद भी वे हार नहीं माने और फिर से सेना संगठित करने लगे।
- कहा जाता है कि 1528 ईस्वी में, उनके कुछ सरदारों ने उन्हें जहर देकर मार दिया, क्योंकि वे बाबर के खिलाफ फिर से युद्ध छेड़ना चाहते थे।
निष्कर्ष
राणा सांगा न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि राजपूत स्वाभिमान के प्रतीक भी थे। वे भारत के उन वीरों में से एक थे जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ संघर्ष किया और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। उनकी वीरता, साहस और संघर्ष की गाथा आज भी भारत के इतिहास में अमर है।
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