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Showing posts from April, 2025

KALIYUG

कलियुग कलियुग हिंदू धर्म में वर्णित चार युगों — सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग — में अंतिम और वर्तमान युग है। यह युग अधर्म, असत्य, पाप, कलह और अज्ञान का युग माना जाता है। 'कलि' शब्द का अर्थ है 'कलह' या 'विवाद', और 'युग' का अर्थ है 'काल'। अतः कलियुग का अर्थ है विवाद और पाप का काल। कलियुग की अवधि और विशेषताएँ: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कलियुग की कुल अवधि 4 लाख 32 हजार वर्ष मानी गई है। यह युग द्वापरयुग के समाप्त होने के बाद प्रारंभ हुआ, जब भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी का त्याग किया। कलियुग में धर्म के चार स्तंभों में से केवल एक (सत्य) ही किसी हद तक शेष बचा है, और वह भी धीरे-धीरे क्षीण होता जा रहा है। इस युग में मनुष्यों की आयु, बल, बुद्धि और नैतिकता अत्यंत घट चुकी है। समाज में अधर्म, लोभ, क्रोध, मोह, अहंकार, छल, कपट और अन्य बुराइयाँ व्यापक रूप से फैल चुकी हैं। कलियुग में समाज और जीवनशैली: कलियुग में समाज भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर अधिक आकर्षित हो गया है। धर्म और नैतिकता का पतन हो गया है। लोग अपने स्वार्थ के लिए धर्म का भी दुरुपयोग करते ...

DWAPAR YUG

द्वापरयुग द्वापरयुग हिंदू धर्म के अनुसार चार युगों में से तीसरा युग है। सत्ययुग और त्रेतायुग के बाद द्वापरयुग का स्थान आता है। इस युग का नाम 'द्वापर' इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें धर्म के चार स्तंभों में से केवल दो स्तंभ (सत्य और दया) ही शेष बचे थे। धर्म की शक्ति और मानवता में गिरावट इस युग की प्रमुख विशेषता रही है। द्वापरयुग की अवधि और विशेषताएँ: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापरयुग की अवधि लगभग 8 लाख 64 हजार वर्षों की थी। इस युग में मानव जीवन की आयु, बल और बुद्धि त्रेतायुग की तुलना में और भी कम हो गई थी। अधर्म, असत्य, ईर्ष्या, क्रोध और लोभ जैसी प्रवृत्तियों ने समाज में अपनी जगह बना ली थी। यद्यपि धर्म का प्रभाव अभी भी था, लेकिन उसके पालन में कमी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी थी। द्वापरयुग के प्रमुख अवतार और घटनाएँ: द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने दो महत्वपूर्ण अवतार लिए — श्रीकृष्ण अवतार: भगवान श्रीकृष्ण ने यदुवंश में जन्म लिया। वे धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए अवतरित हुए। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन से प्रेम, नीति, धर्म, युद्धनीति और भक्ति के अनेक आदर्श प्रस्तुत किए। ...

TRETA YUG

त्रेतायुग त्रेतायुग हिंदू धर्म में वर्णित चार युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग) में दूसरा युग है। यह युग धर्म के चार में से तीन स्तंभों पर टिका था, अर्थात सत्य, तप और यज्ञ प्रमुख थे, जबकि एक स्तंभ (दया) में कमी आने लगी थी। 'त्रेता' का अर्थ है 'तीन', जो इस युग में धर्म के तीन प्रमुख स्तंभों के स्थायित्व का संकेत करता है। त्रेतायुग का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसी युग में अनेक पौराणिक घटनाएँ और भगवान विष्णु के प्रसिद्ध अवतार हुए। त्रेतायुग की अवधि और विशेषताएँ: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, त्रेतायुग लगभग 12 लाख 96 हजार वर्षों तक चला। इस युग में मनुष्यों की आयु और शक्ति सत्ययुग की तुलना में कुछ कम हो गई थी, परंतु वे फिर भी धर्मनिष्ठ और धार्मिक आचरण वाले थे। इस युग में समाज में कर्मकांडों और यज्ञों का अत्यधिक प्रचलन हुआ। यज्ञ, व्रत, तपस्या और दान को धर्म के प्रमुख अंग माना गया। त्रेतायुग के प्रमुख अवतार और घटनाएँ: त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने दो महान अवतार लिए — वामन अवतार और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का अवतार। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने एक ...

SATYUG

सत्ययुग सत्ययुग, जिसे "कृतयुग" भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में वर्णित चार युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग) में से पहला और सबसे पवित्र युग है। यह युग धर्म, सत्य और आदर्शों का प्रतीक माना जाता है। ‘सत्य’ का अर्थ है 'सच' और ‘युग’ का अर्थ है 'काल'। अतः सत्ययुग का अर्थ है सत्य का युग — एक ऐसा समय जब संसार में केवल धर्म और न्याय का शासन था। सत्ययुग का वर्णन: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सत्ययुग की अवधि सबसे लंबी होती है। इसे लगभग 17 लाख 28 हजार वर्षों का युग माना गया है। इस युग में मानव जीवन अत्यंत दीर्घायु, स्वस्थ और सुखमय था। उस समय लोग किसी प्रकार के पाप, छल-कपट, या अधर्म से परिचित नहीं थे। चारों ओर प्रेम, शांति और समृद्धि का वातावरण था। धर्म के चारों स्तंभ — सत्य, दया, तप और दान — पूर्ण रूप से स्थिर थे। सत्ययुग में मानव जीवन: सत्ययुग में मनुष्य पूर्णतः सदाचारी और धर्मपरायण थे। लोग तपस्या, योग और ध्यान के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के निकट रहते थे। वर्ण व्यवस्था का पालन स्वाभाविक रूप से होता था, जिसमें सभी अपने धर्म और कर्तव्यों का पालन करते थ...

AKSHAY TRITIYA

: अक्षय तृतीया अक्षय तृतीया हिंदू धर्म में एक अत्यंत शुभ और पवित्र पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसे ‘अक्ती’ या ‘अखती’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कार्यों और दान का अक्षय (जिसका कभी क्षय न हो) फल प्राप्त होता है। यही कारण है कि इसे "अक्षय तृतीया" कहा जाता है। धार्मिक महत्त्व: अक्षय तृतीया का विशेष धार्मिक महत्त्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म भी इसी दिन हुआ था, अतः इसे परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसके अलावा, इस दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश के साथ मिलकर महाभारत लिखने का कार्य प्रारंभ किया था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, माता अन्नपूर्णा और कुबेर को भी इसी दिन विशेष पूजन कर अक्षय संपत्ति प्राप्त हुई थी। पर्व से जुड़ी परंपराएँ: अक्षय तृतीया के दिन लोग विशेष पूजा-पाठ, व्रत और दान करते हैं। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। कई लोग नए कार्यों की ...

RIYADH SAUDI ARABIA

रियाद - रेगिस्तान की गोद में एक चमकता सपना रियाद, सऊदी अरब की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह शहर अर-रियाद प्रांत का भी प्रशासनिक केंद्र है। रियाद अरबी भाषा के शब्द "रियाद" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "बाग-बगिचे"। इस नाम के पीछे छिपा है इसका ऐतिहासिक स्वरूप, जहाँ कभी पानी के झरनों और हरियाली की भरमार थी। आज रियाद एक आधुनिक महानगर के रूप में दुनिया के नक्शे पर अपनी अलग पहचान बना चुका है। रियाद का इतिहास गहरी जड़ें रखता है। पुराने समय में यह एक छोटा सा गांव हुआ करता था, जो धीरे-धीरे व्यापार, राजनीति और संस्कृति का केंद्र बनता चला गया। 20वीं शताब्दी में जब सऊदी अरब का एकीकरण हुआ, तब रियाद को राजधानी घोषित किया गया और इसके बाद इस शहर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज रियाद एक चकाचौंध से भरा महानगर है, जहाँ विशाल राजमार्ग, गगनचुंबी इमारतें, आधुनिक शॉपिंग मॉल्स और भव्य होटल देखने को मिलते हैं। रियाद का किंगडम सेंटर टॉवर और अल फैसलिया टॉवर इसकी समृद्धि और वास्तुकला कौशल के प्रतीक हैं। दिन में ये टावर व्यवसाय का केंद्र होते हैं, तो रात में रोशनी से जगमगाते हुए एक स्वप्नलो...

SAUKWAG MAKKA MARKET JEDDAH

सूकबग मक्का मार्केट सऊदी अरब के मक्का शहर में स्थित सूकबग मक्का मार्केट एक प्रसिद्ध और व्यस्त बाजार है। यह बाजार तीर्थयात्रियों, स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के बीच अपनी विविधता, पारंपरिक वस्त्रों और उपहार सामग्रियों के लिए काफी लोकप्रिय है। मक्का में हज और उमराह के दौरान लाखों लोग आते हैं, और सूकबग मार्केट उनके लिए खरीदारी का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। यह बाजार पारंपरिक इस्लामी संस्कृति और आधुनिक व्यापारिक गतिविधियों का अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है। यहाँ आपको सस्ती से महंगी तक, हर प्रकार की वस्तुएं मिलती हैं। इत्र (अत्तर), तस्बीह (प्रार्थना माला), इस्लामी पोशाकें, सजावटी सामान, कालीन, सुनहरी आभूषण, खजूर, मिठाइयाँ और हज-उमराह से संबंधित कई जरूरी वस्तुएं यहाँ आसानी से उपलब्ध होती हैं। सूकबग मार्केट की गलियाँ जीवंत और रंगीन हैं। छोटे-छोटे स्टॉल, दुकानें और सड़क किनारे के विक्रेता एक विशेष माहौल बनाते हैं। दुकानदार बड़ी उत्सुकता से ग्राहकों को बुलाते हैं और सौदेबाज़ी करने की परंपरा यहाँ आम है। अगर आपको सही तरीके से मोलभाव करना आता है, तो आप यहाँ शानदार सौदों का आनंद ले सकते हैं। ...

JEDDAH WATERFRONT

जेद्दा वॉटरफ्रंट जेद्दा वॉटरफ्रंट, सऊदी अरब के जेद्दा शहर का एक बेहद सुंदर और प्रसिद्ध समुद्री तट है। यह स्थान स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए एक शानदार अवकाश स्थल बन चुका है। जेद्दा वॉटरफ्रंट लाल सागर के किनारे फैला हुआ है और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता तथा आधुनिक विकास का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। वॉटरफ्रंट को अत्याधुनिक ढंग से विकसित किया गया है। यहाँ पर लंबी पैदल पथ (walkways), साइकिल ट्रैक, खेल के मैदान, फव्वारे, बच्चों के लिए मनोरंजन क्षेत्र, और हरे-भरे बगीचे बनाए गए हैं। यह स्थान दिन हो या रात, हर समय जीवंत रहता है। लोग यहाँ परिवार के साथ पिकनिक मनाने, समुद्र किनारे टहलने, या बस शांत वातावरण का आनंद लेने के लिए आते हैं। जेद्दा वॉटरफ्रंट की सबसे बड़ी विशेषता इसकी स्वच्छता और सुव्यवस्थित व्यवस्था है। यहाँ बैठने के लिए खूबसूरत बेंच, रेस्टोरेंट, कैफे, और शॉपिंग के लिए छोटे स्टॉल भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा, यहाँ कई खूबसूरत कला मूर्तियाँ (art installations) लगाई गई हैं जो इसे और भी आकर्षक बनाती हैं। सूर्यास्त के समय वॉटरफ्रंट का दृश्य बेहद मनमोहक हो जाता है, जब सूरज लाल सा...

JEDDAH CITY

: जेद्दा शहर जेद्दा सऊदी अरब का एक प्रमुख शहर है, जो देश के पश्चिमी तट पर, लाल सागर के किनारे बसा हुआ है। यह सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और मक्का प्रांत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जेद्दा का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह शहर हज़ारों वर्षों से व्यापार, तीर्थ और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र रहा है। जेद्दा को "मक्का का द्वार" भी कहा जाता है, क्योंकि हज और उमराह करने वाले लाखों मुसलमान इस शहर के माध्यम से मक्का पहुँचते हैं। जेद्दा का किंग अब्दुलअज़ीज़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विश्वभर के हाजियों के स्वागत के लिए जाना जाता है। इस वजह से, जेद्दा एक अत्यंत व्यस्त और जीवंत शहर है, जहाँ विविधता देखने को मिलती है। इतिहास की दृष्टि से, जेद्दा की स्थापना लगभग 2500 साल पहले हुई थी। पहले यह एक छोटा सा मछली पकड़ने का गाँव था, लेकिन समय के साथ यह एक प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह बन गया। इस्लाम धर्म के आगमन के बाद जेद्दा का महत्व और भी बढ़ गया। यहाँ का ऐतिहासिक इलाका "अल-बलद" आज भी अपनी प्राचीन वास्तुकला और गलियों के कारण प्रसिद्ध है। अल-बलद में आप पुराने...

DIFFERENT SECTS OF CHRISTIANITY

ईसाइयों के प्रकार ईसाई धर्म विश्व का सबसे बड़ा धर्म है, जो यीशु मसीह के उपदेशों पर आधारित है। समय के साथ ईसाई धर्म में विभिन्न मत और परंपराएँ विकसित हुईं, जिनके आधार पर ईसाइयों को मुख्यतः कई प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है। मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं: 1. कैथोलिक ईसाई (Catholic Christians) कैथोलिक ईसाई सबसे बड़ा समूह है। ये वेटिकन सिटी स्थित पोप के आधीन होते हैं। कैथोलिक चर्च परंपरा, संस्कारों (सैक्रामेंट्स), और पोप के आधिकारिक मार्गदर्शन पर विशेष बल देता है। कैथोलिक चर्च की मुख्य पहचान उसकी परंपरागत पूजा-पद्धति, संतों (Saints) की विशेष श्रद्धा और सात मुख्य संस्कारों (बपतिस्मा, परमप्रसाद आदि) में विश्वास है। 2. प्रोटेस्टेंट ईसाई (Protestant Christians) प्रोटेस्टेंट आंदोलन की शुरुआत 16वीं सदी में मार्टिन लूथर के नेतृत्व में हुई थी। उन्होंने चर्च के कुछ सिद्धांतों और भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध किया था। प्रोटेस्टेंट चर्चों में बाइबिल को सर्वोच्च अधिकार माना जाता है और 'विश्वास द्वारा उद्धार' (Salvation by Faith) पर ज़ोर दिया जाता है। इनमें कई उप-वर्ग हैं जैसे बैपटिस्ट, मेथो...

SISTINE CHAPEL VETICAN CITY

सिस्टीन चैपल सिस्टीन चैपल (Sistine Chapel) वेटिकन सिटी के अपोस्टोलिक पैलेस में स्थित एक भव्य धार्मिक भवन है। यह भवन रोमन कैथोलिक चर्च का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है और इसे मुख्यतः अपनी अद्भुत भित्ति चित्रों और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। सिस्टीन चैपल का निर्माण कार्य 1473 में पोप सिक्सटस चतुर्थ (Pope Sixtus IV) के आदेश पर शुरू हुआ था और 1481 में इसका कार्य पूरा हुआ। उन्हीं के नाम पर इसका नाम "सिस्टीन" पड़ा। सिस्टीन चैपल का वास्तुशिल्प सरल लेकिन प्रभावशाली है। इसकी लंबाई लगभग 40.9 मीटर, चौड़ाई 14 मीटर और ऊँचाई लगभग 20 मीटर है। इसका बाहरी स्वरूप सामान्य दिखाई देता है, लेकिन इसका आंतरिक भाग विश्व कला इतिहास के सबसे महान कृतियों में से एक है। सबसे प्रसिद्ध हिस्सा है इसकी छत पर बनी भित्ति चित्रकारी, जिसे महान पुनर्जागरण कलाकार माइकलएंजेलो ने बनाया था। पोप जूलियस द्वितीय ने 1508 में माइकलएंजेलो को यह कार्य सौंपा था। माइकलएंजेलो ने चार वर्षों की कठिन परिश्रम के बाद 1512 में इस अद्भुत छत चित्रण को पूरा किया। छत पर बाइबिल के "उत्पत्ति ग्रंथ" (Book of Genesis) से...

SAINT PETER'S BASILICA

: सेंट पीटर्स बेसिलिका सेंट पीटर्स बेसिलिका (Saint Peter's Basilica) विश्व के सबसे प्रसिद्ध और विशाल गिरजाघरों में से एक है, जो वेटिकन सिटी में स्थित है। इसे रोमन कैथोलिक चर्च का एक प्रमुख धार्मिक केंद्र माना जाता है। यह गिरजाघर संत पेत्रुस (Saint Peter), जो यीशु मसीह के बारह प्रमुख शिष्यों में से एक और पहले पोप माने जाते हैं, की समाधि स्थल पर बनाया गया है। सेंट पीटर्स बेसिलिका का निर्माण कार्य सन् 1506 में शुरू हुआ और 1626 में पूरा हुआ। इसका निर्माण यूरोप के पुनर्जागरण काल के दौरान हुआ था और इसमें कई महान वास्तुकारों तथा कलाकारों ने योगदान दिया, जिनमें डोनाटो ब्रैमांते (Donato Bramante), माइकलएंजेलो (Michelangelo), कार्लो माडेरनो (Carlo Maderno), और जियान लोरेंजो बर्निनी (Gian Lorenzo Bernini) प्रमुख हैं। बेसिलिका का सबसे प्रमुख आकर्षण इसका विशाल गुम्बद (Dome) है, जिसे माइकलएंजेलो ने डिजाइन किया था। यह गुम्बद आज भी रोम शहर के आकाश में एक प्रमुख स्थलचिह्न के रूप में दिखता है। गुम्बद की ऊँचाई लगभग 136 मीटर है और इसमें 491 सीढ़ियाँ चढ़कर शीर्ष तक पहुँचा जा सकता है, जहाँ से रोम औ...

LATERAN TREATY

लेट्रन संधि लेट्रन संधि एक ऐतिहासिक समझौता था जो 11 फरवरी 1929 को इटली सरकार और रोमन कैथोलिक चर्च के बीच संपन्न हुआ। इस संधि पर इटली के प्रधानमंत्री बेनिटो मुसोलिनी और पोप पायस ग्यारहवें (Pope Pius XI) के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए थे। लेट्रन संधि ने वेटिकन सिटी को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्थापित किया, और इटली तथा चर्च के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवादों को समाप्त कर दिया। इस संधि से पहले, 1870 में इटली के एकीकरण के समय पोप ने अपने अधिकार क्षेत्र को खो दिया था और वेटिकन में कैद होकर रह गए थे। इस स्थिति को "रोमन प्रश्न" (Roman Question) कहा जाता था। लेट्रन संधि ने इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया। संधि के अनुसार वेटिकन सिटी को पूर्ण स्वतंत्रता मिली और पोप को एक सार्वभौमिक शासक के रूप में मान्यता दी गई। इसके बदले में, पोप ने इटली की सरकार को स्वीकार किया और रोम को इटली की राजधानी मान लिया। लेट्रन संधि के मुख्य घटक तीन थे: एक राजनीतिक संधि, जिसने वेटिकन सिटी को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। एक वित्तीय समझौता, जिसके तहत इटली सरकार ने ...

VETICAN CITY

वेटिकन सिटी वेटिकन सिटी विश्व का सबसे छोटा स्वतंत्र राष्ट्र है, जो इटली की राजधानी रोम के भीतर स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल केवल 44 हेक्टेयर (लगभग 0.44 वर्ग किलोमीटर) है और इसकी जनसंख्या लगभग 800 के आसपास है, जो इसे दुनिया का सबसे छोटा देश बनाती है, दोनों क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से। वेटिकन सिटी का शासन एक धर्मगुरु, पोप, द्वारा किया जाता है, जो पूरी दुनिया के रोमन कैथोलिक ईसाइयों के प्रमुख होते हैं। वेटिकन सिटी की स्थापना आधिकारिक रूप से 11 फरवरी 1929 को "लेट्रन संधि" (Lateran Treaty) के तहत हुई थी। यह संधि इटली के प्रधानमंत्री बेनिटो मुसोलिनी और पोप पायस ग्यारहवें के बीच हुई थी, जिसके बाद वेटिकन को एक स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। इस संधि ने रोमन कैथोलिक चर्च और इटली के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवादों को समाप्त कर दिया। वेटिकन सिटी का मुख्य आकर्षण सेंट पीटर बेसिलिका (Saint Peter's Basilica) है, जो विश्व का सबसे बड़ा गिरजाघर है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस स्थल पर बना है जहाँ ईसाइयों के प्रथम संत, स...

POPE OF VETICAN

वेटिकन के पोप वेटिकन सिटी, जो विश्व का सबसे छोटा स्वतंत्र राष्ट्र है, रोमन कैथोलिक चर्च का मुख्यालय है। वेटिकन के प्रमुख और रोमन कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु को "पोप" कहा जाता है। पोप को “ईश्वर के प्रतिनिधि” (Vicar of Christ) और "संत पेत्रुस का उत्तराधिकारी" माना जाता है। कैथोलिक विश्वास के अनुसार, यीशु मसीह ने प्रेरित संत पेत्रुस को चर्च का पहला नेता नियुक्त किया था, और पोप को उसी परंपरा का उत्तराधिकारी माना जाता है। पोप का कार्य न केवल धार्मिक है, बल्कि वह नैतिक और सामाजिक मुद्दों पर भी मार्गदर्शन करते हैं। वे पूरी दुनिया के कैथोलिक समुदाय का नेतृत्व करते हैं और चर्च के सिद्धांतों और नियमों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, पोप वैश्विक शांति, न्याय, गरीबों की मदद, और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए भी कार्य करते हैं। वेटिकन के पोप का चुनाव एक विशेष सभा के माध्यम से होता है, जिसे "कॉन्क्लेव" (Conclave) कहा जाता है। यह सभा वेटिकन में सिस्टीन चैपल में आयोजित होती है, और इसमें दुनिया भर के कार्डिनल्स भाग लेते हैं। जब ...

PROTESTANT CHRISTIAN

प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म ईसाई धर्म का एक प्रमुख संप्रदाय है, जो सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में "प्रोटेस्टेंट सुधार आंदोलन" (Protestant Reformation) के माध्यम से अस्तित्व में आया। इस आंदोलन का नेतृत्व मार्टिन लूथर, जॉन केल्विन और अन्य सुधारकों ने किया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था रोमन कैथोलिक चर्च में फैली बुराइयों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना और ईसाई धर्म को उसकी मूल शिक्षाओं की ओर वापस ले जाना। "प्रोटेस्टेंट" शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द "प्रोटेस्टारी" से हुई है, जिसका अर्थ है "विरोध करना" या "घोषणा करना"। प्रोटेस्टेंट सुधारकों ने बाइबिल को ईसाई जीवन का सर्वोच्च अधिकार माना और इस बात पर बल दिया कि व्यक्ति केवल विश्वास (Faith) के द्वारा ही उद्धार प्राप्त कर सकता है, न कि कर्मों या चर्च के संस्कारों के माध्यम से। प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म के तीन मुख्य सिद्धांत हैं: सोल स्क्रिप्चुरा (Sola Scriptura) — केवल बाइबिल ही ईश्वर का सर्वोच्च और अंतिम वचन है। सोल फिदे (Sola Fide) — केवल विश्वास के द्वारा ही मोक...

CATHOLIC CHRISTIAN

कैथोलिक ईसाई धर्म कैथोलिक ईसाई धर्म, जिसे सामान्यतः केवल "कैथोलिक धर्म" भी कहा जाता है, विश्व का सबसे बड़ा ईसाई सम्प्रदाय है। "कैथोलिक" शब्द का अर्थ होता है "सर्वव्यापक" या "सभी के लिए"। यह सम्प्रदाय यीशु मसीह की शिक्षाओं पर आधारित है, जिन्हें उनके प्रेरितों के माध्यम से फैलाया गया था। कैथोलिक धर्म का मुख्यालय वेटिकन सिटी में स्थित है, और इसके प्रमुख नेता पोप होते हैं, जिन्हें पूरी दुनिया के कैथोलिकों का आध्यात्मिक प्रमुख माना जाता है। कैथोलिक विश्वास के अनुसार, यीशु मसीह परमेश्वर के पुत्र हैं, जो मानवता के पापों से मुक्ति दिलाने के लिए धरती पर आए थे। उनका जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान, ईसाई विश्वास के केंद्र बिंदु हैं। कैथोलिक धर्म में सात संस्कार (सैक्रामेंट्स) का विशेष महत्व है — बपतिस्मा (बपतिस्मा संस्कार), पुष्टि (कंफर्मेशन), यूखरिस्ट (पवित्र भोज), प्रायश्चित (कन्फेशन), अभिषेक (अन्वाइंटिंग ऑफ द सिक), विवाह और पादरीत्व (ऑर्डिनेशन)। ये संस्कार जीवन में परमेश्वर की कृपा प्राप्त करने के माध्यम माने जाते हैं। कैथोलिक चर्च की एक प्रमुख विशेषता उ...

ATTARI BORDER RETREAT CEREMONY

  अटारी बॉर्डर रिट्रीट सेरेमनी  अटारी बॉर्डर रिट्रीट सेरेमनी भारत और पाकिस्तान के बीच पंजाब में स्थित अटारी-वाघा सीमा पर हर शाम आयोजित की जाने वाली एक भव्य और देशभक्ति से भरी सैन्य परेड है। यह आयोजन दोनों देशों के बीच एक परंपरा बन चुका है, जो न केवल सैन्य अनुशासन और समर्पण को दर्शाता है, बल्कि दोनों देशों की जनता को देशभक्ति और एकता की भावना से जोड़ता है। इस सेरेमनी की शुरुआत 1959 में हुई थी और इसे भारत की ओर से सीमा सुरक्षा बल (BSF) और पाकिस्तान की ओर से पाकिस्तान रेंजर्स द्वारा संचालित किया जाता है। यह परंपरा हर दिन सूर्यास्त से कुछ समय पहले होती है, और लगभग 30 से 45 मिनट तक चलती है। सेरेमनी का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के राष्ट्रीय ध्वजों को सूर्यास्त से पहले सम्मानपूर्वक उतारना होता है। परंतु यह केवल एक साधारण प्रक्रिया नहीं होती। इसमें सैनिकों का ऊर्जावान मार्च, पैरों की तेज़ थाप, गगनभेदी नारों और भावनाओं से भरी क्रियाओं के माध्यम से दोनों देशों की ताकत और सम्मान को दर्शाया जाता है। सैनिक अत्यधिक अनुशासन और समन्वय के साथ एक-दूसरे के सामने मार्च करते हैं, हाथ मिलाते...

ATTARI BORDER

  अटारी बॉर्डर (Attari Border)  अटारी बॉर्डर, जिसे आमतौर पर वाघा-अटारी सीमा के नाम से जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच स्थित एक प्रसिद्ध सीमा स्थल है। यह पंजाब राज्य के अमृतसर जिले में स्थित है और यह भारत का अंतिम गाँव है, जो पाकिस्तान के लाहौर से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भारत की ओर इस स्थान को "अटारी" और पाकिस्तान की ओर इसे "वाघा" कहा जाता है। अटारी बॉर्डर का सबसे प्रमुख आकर्षण यहाँ हर शाम होने वाली “बॉर्डर रिट्रीट सेरेमनी” है, जिसे देखने के लिए भारत और विदेशों से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। यह सेरेमनी भारत के बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) और पाकिस्तान के रेंजर्स द्वारा एक विशेष आयोजन के रूप में की जाती है। इस समारोह में दोनों देशों के जवान एक विशेष शैली में मार्च करते हैं, गेट खोलते और बंद करते हैं, और राष्ट्रीय ध्वज को पूरे सम्मान के साथ उतारा जाता है। इस आयोजन की सबसे खास बात इसकी देशभक्ति से भरी हुई ऊर्जा होती है। भारत की तरफ दर्शकों के बैठने के लिए स्टेडियम जैसी व्यवस्था होती है जहाँ लोग तिरंगा लहराते हुए भारत माता की जय और वंदे मातरम्...

PERMANENT INDUS COMMISSION

  स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission)  स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission - PIC) भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि, 1960 के तहत गठित एक द्विपक्षीय संस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य सिंधु नदी प्रणाली के जल बंटवारे को लेकर पारस्परिक सहयोग, संवाद और विवादों के समाधान को सुनिश्चित करना है। यह आयोग भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए संधि के क्रियान्वयन की निगरानी करता है। इस आयोग का गठन सिंधु जल संधि के अनुच्छेद VIII के अंतर्गत हुआ था। आयोग में भारत और पाकिस्तान से एक-एक आयुक्त होते हैं। दोनों आयुक्तों का कार्यकाल लम्बे समय का होता है और वे अपने-अपने देश की सरकारों द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। ये आयुक्त जल संबंधी मामलों के विशेषज्ञ होते हैं और तकनीकी व कानूनी दोनों पहलुओं में पारंगत होते हैं। स्थायी सिंधु आयोग का मुख्य कार्य साल में कम से कम एक बार बैठक आयोजित करना है, जो भारत और पाकिस्तान में बारी-बारी से होती है। इन बैठकों में दोनों देशों द्वारा नदियों पर किए जा रहे निर्माण कार्यों, जल उपयोग और तकनीकी जानकारियों का आदान-प्रदान होता है। इसके अलावा आयोग नदियो...

INDUS WATER TREATY

  सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty)  सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर एक ऐतिहासिक समझौता है, जो 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षरित हुआ था। इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी। इस संधि के अंतर्गत भारत और पाकिस्तान के बीच बहने वाली छह प्रमुख नदियों – सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज – के जल का बंटवारा किया गया। संधि के अनुसार, पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास और सतलुज) भारत को दी गईं, जबकि पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम और चिनाब) पाकिस्तान को दी गईं। हालांकि, भारत को पश्चिमी नदियों के जल का सीमित उपयोग – जैसे सिंचाई, घरेलू जरूरतें, और सीमित जल विद्युत उत्पादन – की अनुमति दी गई है, बशर्ते इससे पाकिस्तान की जल आपूर्ति बाधित न हो। इस संधि की सबसे खास बात यह है कि यह भारत-पाकिस्तान के बीच कई युद्धों और तनावों के बावजूद आज तक लागू है। 1965, 1971 और 1999 के युद्धों के समय भी यह संधि टूटने नहीं दी गई। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सफल जल...

GURUDWARA KARTARPUR SAHIB PAKISTAN

  गुरुद्वारा करतारपुर साहिब गुरुद्वारा करतारपुर साहिब एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के नारोवाल जिले में स्थित है। यह गुरुद्वारा सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित किया गया था। गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष यहीं पर बिताए और यहीं पर उन्होंने 1539 ईस्वी में अपने प्राण त्यागे। यह स्थान रावी नदी के किनारे स्थित है और भारतीय सीमा से मात्र 4.5 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत के पंजाब राज्य के डेरा बाबा नानक से यह साफ़ दिखाई देता है। करतारपुर साहिब गुरुद्वारा सिख समुदाय के लिए अत्यंत श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में एक आध्यात्मिक commune की स्थापना की थी, जहाँ वे खेती करते थे और आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करते थे। उनका सन्देश भाईचारे, समानता, सेवा और ईश्वर के प्रति समर्पण पर आधारित था। उन्होंने लोगों को जात-पात, धर्म और सामाजिक भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता की सेवा करने की प्रेरणा दी। करतारपुर कॉरिडोर, जो 2019 में भारत और पाकिस्तान की सरकारों के सहयोग से शुरू हुआ, सिख श्रद्धालुओं को बिना वीजा के इस...

NIHANG SIKH

  निहंग सिख  निहंग सिख सिख समुदाय के एक विशेष और प्राचीन योद्धा वर्ग हैं, जिन्हें उनकी वीरता, अनुशासन, धार्मिक समर्पण और विशिष्ट वेशभूषा के लिए जाना जाता है। इन्हें ‘अकाल फौज’ यानी 'अमर सेना' भी कहा जाता है। निहंग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'निषंक' से हुई है, जिसका अर्थ है 'निर्भय' या 'निर्भीक'। वे सिख धर्म के महान गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा गठित खालसा पंथ के प्रारंभिक और महत्वपूर्ण अंग रहे हैं। निहंग सिखों का जीवन पूरी तरह से गुरुबाणी, मार्शल आर्ट, घुड़सवारी और शस्त्र विद्या को समर्पित होता है। ये दिन की शुरुआत अमृतवेला में पाठ और अरदास से करते हैं। निहंग सिखों की विशेष पहचान उनके नीले रंग के वस्त्र, ऊँचे दस्तार (पगड़ी) जिसमें लोहे की गोल चक्कर (कड़ा) लगे होते हैं, और उनके साथ हमेशा रहने वाले शस्त्र जैसे तलवार, भाला, कृपाण और नेजा से होती है। निहंग अपने पारंपरिक अस्त्र-शस्त्रों के साथ-साथ ‘गटका’ नामक युद्ध कला में भी पारंगत होते हैं। इनकी जीवनशैली साधु-संतों जैसी होती है लेकिन जरूरत पड़ने पर ये योद्धा बनकर युद्धभूमि में उतरते हैं। इतिहास में न...

GURU VANI

  गुरु वाणी  गुरु वाणी सिख धर्म के पवित्र ग्रंथों में वर्णित उन शिक्षाओं और उपदेशों को कहा जाता है जो सिख गुरुओं द्वारा दी गई हैं। ये वाणियाँ मुख्यतः "श्री गुरु ग्रंथ साहिब" में संग्रहीत हैं, जो सिख धर्म का सर्वोच्च धार्मिक ग्रंथ है। गुरु वाणी न केवल सिख धर्मावलंबियों के लिए मार्गदर्शक है, बल्कि यह सम्पूर्ण मानवता को सत्य, प्रेम, करुणा और सेवा का संदेश देती है। गुरु वाणी की रचना सिख धर्म के पहले गुरु, श्री गुरु नानक देव जी से लेकर दसवें गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी तक के समय में हुई। परन्तु "श्री गुरु ग्रंथ साहिब" में पहले नौ गुरुओं की वाणी सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त संत कबीर, रविदास, नामदेव, फरीद जैसे कई भक्ति आंदोलन के संतों की वाणियाँ भी इसमें स्थान पाई हैं। यह ग्रंथ 1430 पृष्ठों में संकलित है और इसे "गुरु ग्रंथ साहिब" के नाम से जाना जाता है। गुरु वाणी का प्रमुख उद्देश्य मानव को ईश्वर की भक्ति, सच्चाई, परिश्रम और परोपकार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है। इसमें बताया गया है कि ईश्वर एक है और वह हर जगह व्याप्त है। गुरु नानक देव जी ने कहा – “इक...

HOLA MOHALLA

  होला मोहल्ला (Hola Mohalla)  होला मोहल्ला एक प्रमुख सिख त्योहार है जिसे विशेष रूप से पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार होली के अगले दिन मनाया जाता है और इसे सिख वीरता, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। इसका आयोजन खासकर आनंदपुर साहिब में किया जाता है, जहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक इकट्ठा होते हैं। इस पर्व की शुरुआत दसवें सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने 1701 में की थी। उन्होंने होली को केवल रंगों का त्योहार न मानते हुए, उसे सिख योद्धाओं की शक्ति और पराक्रम को प्रदर्शित करने के अवसर के रूप में देखा। उन्होंने 'होला मोहल्ला' की परंपरा शुरू की, जिसमें सिख सैनिक युद्ध कौशल, घुड़सवारी, तलवारबाज़ी, गटका (एक प्रकार का मार्शल आर्ट), और अन्य शारीरिक कलाओं का प्रदर्शन करते हैं। यह एक प्रकार का मॉक युद्ध (काल्पनिक युद्ध अभ्यास) होता है जिससे योद्धाओं को युद्ध की तैयारी में मदद मिलती थी। होला मोहल्ला केवल शारीरिक प्रदर्शन तक सीमित नहीं है। इस दौरान कीर्तन, कवि दरबार, भजन, और गुरबाणी पाठ जैसे धार्मिक आयोजन भी होते हैं। लंगर (सामूहिक भोजन) की व...

ANANDPUR SAHIB

आनंदपुर साहिब – सिख धर्म की पवित्र भूमि आनंदपुर साहिब , भारत के पंजाब राज्य के रोपड़ ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगर है, जो सिख धर्म के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह नगर सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा स्थापित किया गया था और यहीं पर खालसा पंथ की स्थापना भी हुई थी। इसलिए आनंदपुर साहिब को सिख धर्म की धार्मिक राजधानी भी कहा जाता है। स्थापना और इतिहास आनंदपुर साहिब की स्थापना गुरु तेग बहादुर जी ने 1665 में की थी। उन्होंने इस नगर को "चक्क नानकी" के नाम से बसाया था, जो उनकी माता माता नानकी जी के नाम पर था। बाद में उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह जी ने इसका नाम बदलकर आनंदपुर साहिब रखा, जिसका अर्थ है "आनंद का नगर"। यह नगर मुग़ल अत्याचारों और धार्मिक असहिष्णुता के विरुद्ध सिखों के संघर्ष का प्रमुख केंद्र बना। यहीं पर 13 अप्रैल 1699 को गुरु गोविंद सिंह जी ने पंच प्यारे के माध्यम से खालसा पंथ की स्थापना की। यह घटना सिख इतिहास की सबसे गौरवशाली घटनाओं में से एक मानी जाती है। धार्मिक महत्त्व आनंदपुर साहिब सिख धर्म के अ...

KHALSA PANTH

खालसा पंथ – सिख धर्म का गौरवशाली स्वरूप खालसा पंथ की स्थापना श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को वैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में की थी। यह पंथ सिख धर्म की एक वीर, अनुशासित और धार्मिक शाखा है, जिसका उद्देश्य धर्म की रक्षा, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और मानवता की सेवा करना है। "खालसा" शब्द का अर्थ है – शुद्ध, पवित्र और पूर्ण रूप से ईश्वर को समर्पित व्यक्ति । गुरु गोविंद सिंह जी ने पांच प्रेमियों (पंज प्यारे) – भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहिब सिंह को अमृत पिला कर पहले पंच प्यारे बनाया और फिर स्वयं उनसे अमृत लेकर खालसा पंथ की स्थापना की। खालसा पंथ का मूल उद्देश्य सिखों को बाहरी और आंतरिक रूप से मजबूत बनाना था। इसे एक ऐसा संगठन बनाया गया जो अधर्म, अत्याचार और जात-पात के भेदभाव के विरुद्ध खड़ा हो सके। खालसा को पांच "ककार" (5K) धारण करना अनिवार्य है: केश – बिना कटे बाल कंघा – बालों को सवच्छ रखने के लिए कड़ा – लोहे का ब्रेसलेट, जो ईश्वर की याद दिलाता है कच्छा – विशेष वस्त्र जो आत्म-संयम दर्शाता है कृप...

SARBLOH GRANTH

सरबलोह ग्रंथ – एक आध्यात्मिक और युद्ध-प्रधान ग्रंथ सरबलोह ग्रंथ सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण लेकिन विवादास्पद ग्रंथ है, जिसे दसवें सिख गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी से जोड़ा जाता है। यह ग्रंथ सिखों के धार्मिक, आध्यात्मिक और सैन्य जीवन में वीरता, बलिदान और धर्म की रक्षा के आदर्शों को दर्शाता है। "सरबलोह" का अर्थ है – शुद्ध लोहा , जो सिख पंथ में शक्ति, शौर्य और अस्त्र-शस्त्रों का प्रतीक है। यह ग्रंथ दसम ग्रंथ (Dasam Granth) के बाद रचना के रूप में आता है और इसमें कुल मिलाकर भगवान के अवतार, धर्म युद्ध, सिख पंथ की रक्षा और खालसा की महिमा का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ विशेष रूप से खालसा पंथ की स्थापना , उसके उद्देश्य और उसके आदर्शों को मजबूती से प्रस्तुत करता है। मुख्य विषय: सरबलोह ग्रंथ का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा हेतु युद्ध और बलिदान को धर्म का एक आवश्यक हिस्सा मानना है। इसमें गुरु गोविंद सिंह जी के विचारों के अनुरूप धर्म युद्ध (न्याय के लिए किया गया युद्ध) को महिमामंडित किया गया है। इसमें अकाल पुरख (परमेश्वर) की स्तुति करते हुए कहा गया है कि परमेश्वर स्वयं ही सरबल...

JANAMSAKHIS

जनमसाखियाँ जनमसाखियाँ सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के जीवन, शिक्षाओं और चमत्कारों से संबंधित जीवनीपरक कहानियों का संग्रह है। "जनम" का अर्थ है "जन्म" और "साखी" का अर्थ है "गवाही" या "कहानी"। इस प्रकार जनमसाखियाँ गुरु नानक देव जी के जीवन की घटनाओं और उनकी शिक्षाओं की साक्षी देने वाली कथाएँ हैं। ये कहानियाँ सिख साहित्य और परंपरा का एक अमूल्य हिस्सा हैं। इतिहास और उद्देश्य जनमसाखियों का लेखन गुरु नानक देव जी के शरीर त्यागने के कुछ वर्षों बाद प्रारंभ हुआ। इनका उद्देश्य केवल ऐतिहासिक घटनाओं को दर्ज करना नहीं था, बल्कि लोगों को उनकी शिक्षाओं से परिचित कराना और धर्म, भक्ति, सत्य, सेवा और समानता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना था। प्रमुख जनमसाखियाँ जनमसाखियों के कई संस्करण हैं, जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं: बाले वाली जनमसाखी – यह सबसे प्रसिद्ध और प्रचलित जनमसाखी है। इसे गुरु नानक देव जी के अनुयायी भाई बाला द्वारा लिखा गया माना जाता है। मीहेरबान वाली जनमसाखी – यह जनमसाखी गुरुद्वारा रामदासिया सम्प्रदाय से संबंधित ह...

DASAM GRANTH

दसम ग्रंथ दसम ग्रंथ सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है, जिसे "दसम पातशाही का ग्रंथ" भी कहा जाता है। यह ग्रंथ मुख्य रूप से सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की रचनाओं का संग्रह है। "दसम" का अर्थ है "दसवां", जो गुरु गोबिंद सिंह जी की उपाधि की ओर संकेत करता है। यह ग्रंथ सिख साहित्य, इतिहास, दर्शन, और वीरता की भावना को समर्पित एक विलक्षण रचना है। रचना और इतिहास दसम ग्रंथ की रचनाएं 17वीं शताब्दी के अंत और 18वीं शताब्दी की शुरुआत में गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा की गईं। यह ग्रंथ मूलतः अखंड (जुड़ी हुई) पांडुलिपियों के रूप में मिला, जिसे बाद में विद्वानों और सिख संस्थानों ने संपादित कर प्रकाशित किया। हालांकि इसकी कुछ रचनाओं को लेकर समय-समय पर विवाद रहा है, फिर भी सिख समाज का एक बड़ा वर्ग इसे गुरु गोबिंद सिंह जी की अमूल्य देन मानता है। भाषा और लिपि दसम ग्रंथ की रचनाएं मुख्य रूप से ब्रज भाषा , अवधी , अरबी , फारसी , और संस्कृत में हैं तथा इसे गुरमुखी लिपि में लिखा गया है। इसकी भाषा में ओज, वीर रस और काव्यात्मक सौंदर्य का अद्भुत मेल देखने को ...

GURU GRANTH SAHIB

गुरु ग्रंथ साहिब गुरु ग्रंथ साहिब सिख धर्म का प्रमुख और सर्वोच्च पवित्र ग्रंथ है। इसे "आदि ग्रंथ" भी कहा जाता है और यह सिखों का आध्यात्मिक मार्गदर्शक है। सिख धर्म के अनुयायी इसे "जीवित गुरु" के रूप में मानते हैं। इसका संदेश सार्वभौमिक, मानवतावादी और ईश्वर-परक है। इसमें जीवन के सभी पहलुओं पर मार्गदर्शन मिलता है — भक्ति, सेवा, सत्य, प्रेम, और समानता। इतिहास और रचना गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन सिखों के पाँचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव जी ने 1604 ईस्वी में किया था। उन्होंने पहले चार गुरुओं की वाणियों को इकट्ठा कर अपनी वाणियों के साथ मिलाकर एक ग्रंथ तैयार किया, जिसे "आदि ग्रंथ" कहा गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने संत कबीर, नामदेव, रैदास, भक्ति आंदोलन के अन्य संतों और मुस्लिम फकीरों की भी वाणियाँ इस ग्रंथ में शामिल कीं। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी , जो सिखों के दसवें गुरु थे, उन्होंने इस ग्रंथ में गुरु तेग बहादुर जी की वाणी को भी जोड़ा और 1708 में इसे "गुरु" का दर्जा दिया। तभी से सिखों का अंतिम और शाश्वत गुरु यही ग्रंथ है। संरचना और भाषा गुरु ग्रंथ सा...

GURUMUKHI SCRIPT

गुरमुखी लिपि गुरमुखी लिपि सिख धर्म और पंजाबी भाषा की प्रमुख लिपि है। यह लिपि सिखों के धार्मिक ग्रंथों को लिखने के लिए प्रयुक्त होती है और इसे सिख संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। “गुरमुखी” शब्द का अर्थ है “गुरु के मुख से निकला हुआ”। ऐसा माना जाता है कि इस लिपि का विकास सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के समय में हुआ, लेकिन इसे व्यवस्थित रूप से गुरु अंगद देव जी ने स्थापित किया। गुरमुखी लिपि की संरचना बहुत ही सरल और वैज्ञानिक है। इसमें कुल 35 मूल अक्षर होते हैं, जिन्हें “ਪੈਂਤੀ ਅੱਖਰ” कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ संयोजन और विशेष संकेत भी होते हैं जिन्हें जोड़कर विभिन्न ध्वनियाँ बनाई जाती हैं। यह लिपि अबूगिडा (abugida) प्रकार की है, यानी इसमें प्रत्येक व्यंजन में एक स्वर समाहित होता है और अन्य स्वरों के लिए अतिरिक्त चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। गुरमुखी लिपि को लिखने के लिए दाहिने से बाएं नहीं, बल्कि बाएं से दाहिने लिखा जाता है, जैसे हिंदी और अंग्रेज़ी। इसकी लेखन शैली स्पष्ट, सरल और सुव्यवस्थित होती है, जिससे पढ़ना और सीखना अपेक्षाकृत आसान होता है। गुरमुखी का प...

HOLY BOOKS OF SIKHISM

सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ सिख धर्म में धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए कई पवित्र ग्रंथ हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है गुरु ग्रंथ साहिब । इसके अलावा अन्य ग्रंथ भी सिख इतिहास, परंपरा और शिक्षाओं से संबंधित हैं। नीचे प्रमुख ग्रंथों का विवरण दिया गया है: 1. गुरु ग्रंथ साहिब गुरु ग्रंथ साहिब सिख धर्म का मुख्य और सर्वोच्च ग्रंथ है। यह सिखों का "जीवित गुरु" माना जाता है। इसमें सिख धर्म के दस गुरुओं में से पहले पाँच गुरुओं की वाणियाँ (शिक्षाएँ), संत कबीर, नामदेव, रैदास, और अन्य भक्ति आंदोलन के संतों की रचनाएँ भी शामिल हैं। इसमें कुल 1430 पृष्ठ हैं। इसे गुरमुखी लिपि में लिखा गया है। इसे गुरु अर्जुन देव जी ने संकलित किया और बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसे अंतिम रूप देकर "गुरु" का दर्जा दिया। 2. दसम ग्रंथ (Dasam Granth) यह ग्रंथ गुरु गोबिंद सिंह जी की रचनाओं का संग्रह है। इसमें उनके वीर रस, धार्मिक, और दार्शनिक विचार शामिल हैं। इसमें जाप साहिब , चौपाई साहिब , बचर नाटक , अकाल उसतत आदि प्रमुख रचनाएँ हैं। यह ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब के बाद सबसे ज्यादा पढ़ा जान...

FOOD CULTURE OF SIKHISM

सिख धर्म की भोजन संस्कृति सिख धर्म न केवल एक आध्यात्मिक मार्ग है, बल्कि यह समाज में समानता, सेवा और करुणा का संदेश भी देता है। इसी भावना का प्रतिबिंब उसकी भोजन संस्कृति में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। सिख धर्म की भोजन संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है – लंगर , जो नि:स्वार्थ सेवा और समानता का प्रतीक है। लंगर की परंपरा लंगर की परंपरा की शुरुआत गुरु नानक देव जी ने की थी। उन्होंने यह संदेश दिया कि ईश्वर की नजर में सभी मनुष्य समान हैं। इसलिए भोजन करते समय कोई ऊंच-नीच, जात-पात या अमीर-गरीब का भेदभाव नहीं होना चाहिए। लंगर में सभी लोग एक पंक्ति में बैठकर एक ही प्रकार का भोजन करते हैं। यह सामूहिक भोजन गुरुद्वारे में पूरी श्रद्धा और सेवा-भाव से तैयार किया जाता है और सभी को नि:शुल्क परोसा जाता है। भोजन की प्रकृति सिख धर्म में भोजन को शुद्ध और सात्विक माना जाता है। गुरुद्वारे में जो भोजन परोसा जाता है वह शुद्ध रूप से शाकाहारी होता है। इसमें दाल, रोटी, सब्ज़ी, चावल, अचार और कभी-कभी मिठाई शामिल होती है। यह भोजन न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि पौष्टिक भी होता है। साथ ही इसे प्रेम और सेवा की...

MOST FAMOUS GURU DWARAS

  सिख धर्म के प्रमुख गुरुद्वारे (महत्वपूर्ण गुरुद्वारे)  सिख धर्म में गुरुद्वारा वह स्थान होता है जहाँ सिख संगत (समाज) एकत्र होकर गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी का पाठ करती है, कीर्तन सुनती है, लंगर (निःशुल्क भोजन) करती है और सेवा करती है। ये स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र हैं, बल्कि सामाजिक एकता, सेवा और समानता के प्रतीक भी हैं। नीचे सिख धर्म के कुछ महत्वपूर्ण गुरुद्वारों की जानकारी दी गई है: 1. श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर), अमृतसर स्थान : अमृतसर, पंजाब महत्व : यह सिख धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है। इसे स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि इसका ऊपरी हिस्सा सोने से मढ़ा हुआ है। विशेषता : गुरु अर्जुन देव जी द्वारा स्थापित, यह स्थान सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला है। 2. श्री अकाल तख्त साहिब, अमृतसर स्थान : हरमंदिर साहिब परिसर में ही स्थित। महत्व : यह सिखों की धर्मिक और राजनीतिक सत्ता का केंद्र है। स्थापना : गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने 1606 में की थी। 3. गुरुद्वारा बंगला साहिब, दिल्ली स्थान : कनॉट प्लेस, नई दिल्ली महत्व : गुरु हरकृष्ण साहिब जी की स्...

GURU GOBIND SINGH JI

  गुरु गोबिंद सिंह जी – सिखों के दशम गुरु और साहस के प्रतीक (500 शब्दों में) गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दशवें गुरु थे और उनका जीवन साहस, बलिदान, धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय की स्थापना का प्रतीक रहा है। उनका जन्म 22 दिसम्बर 1666 को  पटना साहिब (वर्तमान बिहार) में हुआ था। उनके पिता, गुरु तेग बहादुर जी , एक महान संत और शहीद थे, जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान किया। गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन संघर्षों, युद्धों और धार्मिक कर्तव्यों के साथ-साथ साहित्य, कला और समाज सुधार की दिशा में एक महान योगदान के रूप में प्रस्तुत होता है। बाल्यावस्था और शिक्षा गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म एक ऐसी स्थिति में हुआ था, जब सिख समुदाय मुग़ल साम्राज्य के अत्याचारों का सामना कर रहा था। बचपन में ही उन्होंने अपने परिवार के कई सदस्यों को खो दिया। उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी को शहीद कर दिया गया था। गुरु गोबिंद सिंह जी ने बचपन से ही उच्च स्तरीय धार्मिक शिक्षा प्राप्त की और वे बहुत अच्छे शास्त्रज्ञ, कवि और विद्वान बने। उनके शिक्षकों में गुरु राम दास जी , गुरु अर्जुन देव जी , और गुरु...

GURU TEG BAHADUR JI

  गुरु तेग बहादुर जी – शहादत और धर्म की रक्षा के प्रतीक  गुरु तेग बहादुर साहिब जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे। उनका जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर के पास हेनवाल गाँव (अब पाकिस्तान में) हुआ था। वे गुरु हरगोपिंद साहिब जी के छोटे पुत्र थे। गुरु तेग बहादुर जी का जीवन शहादत, साहस, और धर्म की रक्षा के प्रतीक के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। गुरु तेग बहादुर जी का नाम पहले तेगबीर था, जिसका अर्थ है "तलवार का वीर"। वे बचपन से ही अत्यधिक वीर और साहसी थे, और उन्हें बचपन से ही शास्त्रों, घुड़सवारी, और शस्त्र विद्या का अभ्यास कराया गया था। वे एक महान योद्धा और पराक्रमी व्यक्तित्व के मालिक थे, लेकिन उनके जीवन का सबसे बड़ा पहलू उनका धर्म के प्रति अडिग निष्ठा और बलिदान था। धार्मिक और सामाजिक कार्य गुरु तेग बहादुर जी का जीवन सिख धर्म के लिए विशेष योगदान रहा। उन्होंने सिख समुदाय को सिखाया कि सच्चा धर्म वही है जो सत्कर्म, सत्य, सेवा और परोपकार के साथ हो। गुरु जी ने "किसी भी धर्म या विश्वास का उल्लंघन करने के बजाय अपनी आत्मा की रक्षा" का संदेश दिया। उन्होंने धर्म, समानता और भक्...

GURU HAR KRISHNA JI

  गुरु हरकृष्ण जी – करुणा, सेवा और मासूम शहादत के प्रतीक  गुरु हरकृष्ण साहिब जी सिख धर्म के आठवें गुरु थे। वे सबसे कम उम्र में गुरु बनने वाले और सबसे कम आयु में देह त्याग करने वाले सिख गुरु हैं। उनका जन्म 7 जुलाई 1656 को किरातपुर साहिब (पंजाब) में हुआ था। उनके पिता गुरु हर राय जी और माता माता कृष्णा कौर जी थीं। गुरु हर राय जी ने अपने बड़े बेटे राम राय के बजाय छोटे बेटे हरकृष्ण जी को गुरु गद्दी सौंपी, क्योंकि राम राय ने मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के दरबार में गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी में परिवर्तन कर दिया था। गुरु हरकृष्ण जी मात्र 5 वर्ष की आयु में, 20 अक्टूबर 1661 को गुरु बने। इतनी कम उम्र में गुरु बनना कोई साधारण बात नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपने आचरण, सेवा भावना और दयालुता से सिद्ध कर दिया कि उम्र का ज्ञान और करुणा से कोई संबंध नहीं है। करुणा और सेवा की मूर्ति गुरु हरकृष्ण जी का जीवन करुणा और सेवा का प्रतीक था। जब उन्हें गुरु गद्दी प्राप्त हुई, उस समय देश में मुग़ल शासन था और समाज में अनेक प्रकार की असमानताएँ, बीमारियाँ और दुख व्याप्त थे। गुरु जी ने लोगों को प्रेम, से...

GURU HAR RAY JEE

  गुरु हर राय जी – करुणा, सहिष्णुता और शांति के प्रतीक  गुरु हर राय जी सिख धर्म के सातवें गुरु थे। उनका जन्म 16 जनवरी 1630 को किरातपुर साहिब (पंजाब) में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबा गुरदित्त जी और माता का नाम माता निहाल कौर जी था। गुरु हर राय जी, गुरु हरगोबिंद साहिब जी के पौत्र थे। वे बचपन से ही अत्यंत विनम्र, दयालु और शांत स्वभाव के थे। उनमें बचपन से ही सेवा, भक्ति और करुणा की भावना विद्यमान थी। गुरु हर राय जी को उनके दादा गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने विशेष रूप से धर्म और सेवा के संस्कार दिए। उन्होंने छोटी उम्र में ही आध्यात्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियाँ निभाना शुरू कर दिया था। 8 मार्च 1644 को, अपने दादा गुरु हरगोबिंद साहिब जी के देहावसान के बाद, केवल 14 वर्ष की आयु में वे सिखों के सातवें गुरु बने। दयालु और चिकित्सक हृदय गुरु हर राय जी को फूलों, वनस्पतियों और औषधियों से विशेष प्रेम था। उन्होंने किरातपुर में एक बड़ा हर्बल बाग (औषधीय उद्यान) तैयार करवाया और एक औषधालय (dispensary) भी स्थापित किया, जहाँ रोगियों का निःशुल्क इलाज किया जाता था। उन्होंने अपने सेवकों को न...

GURU HARGOBIND SAHI6JI

  गुरु हरगोबिंद साहिब जी – वीरता और भक्ति के प्रतीक  गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिख धर्म के छठे गुरु थे। उनका जन्म 19 जून 1595 को गुरु की वडाली (वर्तमान में अमृतसर ज़िले में) में हुआ था। वे गुरु अर्जुन देव जी और माता गंगा जी के पुत्र थे। गुरु अर्जुन देव जी की शहादत के बाद जब केवल 11 वर्ष की आयु में हरगोबिंद जी को गुरु बनाया गया, तब सिख समुदाय के सामने एक बड़ा संकट था। उन्होंने न केवल गुरु परंपरा को आगे बढ़ाया बल्कि सिखों को आत्मरक्षा, सम्मान और वीरता का पाठ भी पढ़ाया। गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने सिख धर्म में मिरी-पिरी की परंपरा शुरू की। उन्होंने एक ओर धर्म (पिरी) की सेवा की और दूसरी ओर राजनैतिक शक्ति (मिरी) को भी अपनाया। उन्होंने अपने कमर पर दो तलवारें धारण कीं – एक आध्यात्मिक शक्ति की और दूसरी सांसारिक (राजनैतिक और युद्ध कौशल) की प्रतीक। यह कदम यह दर्शाने के लिए था कि धर्म की रक्षा के लिए आत्मबल और बाहुबल दोनों आवश्यक हैं। उन्होंने अकाल तख्त (अकाल का सिंहासन) की स्थापना की, जो स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) के सामने स्थित है। यह सिख धर्म की राजनैतिक और धार्मिक विचार-विमर्श का...

GURU ARJUN DEV JI

  गुरु अर्जुन देव जी – शांति, सहनशीलता और बलिदान के प्रतीक  गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पाँचवें गुरु थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल (पंजाब) में हुआ था। वे गुरु राम दास जी और माता भानी जी के सुपुत्र थे। बचपन से ही वे शांत, संयमी, विद्वान और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। गुरु राम दास जी ने उनकी बुद्धिमत्ता, सेवा भावना और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु अर्जुन देव जी ने सिख धर्म को मजबूत आधार प्रदान किया और समाज में शांति, समानता और भक्ति का संदेश फैलाया। वे पहले सिख गुरु थे जिन्होंने सिख समुदाय को एक स्थिर और संगठित रूप में विकसित किया। उन्होंने स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) के निर्माण कार्य को पूरा करवाया, जो आज सिख धर्म का सबसे पवित्र स्थल है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसका निर्माण ज़मीन के तल से नीचे किया गया, ताकि हर वर्ग और हर स्तर का व्यक्ति बिना किसी अहंकार के उसमें प्रवेश कर सके। गुरु अर्जुन देव जी का सबसे महान कार्य था – आदि ग्रंथ (अब गुरु ग्रंथ साहिब) का संकलन। उन्होंने सिख गुरुओं की वाणियों के साथ-साथ संत कबीर, नाम...